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Thursday, December 15, 2011

sadgurudev chalisa.





गुरु वाणी
तुम्हारा जीवन एक सामान्य घटना नहीं है अक सामान्य चिंतन नहीं है ,तुम्हे यह मनुष्य देह अनायास ही प्राप्त नहीं हो गयी है कितने ही संघर्ष कितने ही गुरु के प्रयास इसके पीछे है,अत: इस जीवन को सहज ही मत लेना |इसका मूल्य समझो और मूल उद्देश्य को जानो |

मुझे अत्याधिक वेदना होती है जब तुम एक निद्रा की सी अवस्था में खोये रहते हो ,तुम भ्रम में पड़े रहते हो तथा वे भ्रम तुम्हे मूल लक्ष्य की और बढ़ने से रोकते है ,मानव जीवन पाकर भी आप खोये हुए हो यह आपका दुर्भाग्य ही है |

अगर ऐसा है तो तुम मेरे शिष्य हो ही नहीं सकते क्योंकि अगर आप मेरे शिष्य है तो आपमें यह क्षमता होनी चाहिए कि आप पशुता से उपर उठ कर मनुष्यता तथा मनुष्यता से उपर उठ कर देवता के स्थान पर पहुँच जाए |

शिष्य वही है जो भोतिकता को भोगे परन्तु आपने मूल उद्देश्य से न डगमगाए |उसकी द्रष्टि हमेशा आपने लक्ष्य पर टिकी रहे |मेरे इच्छा है कि तुम्हे उस उच्चतम स्थिति पर स्थापित कर दूं जहा भारत क्या ,पूरे विश्व में तुम्हे चुनोती देने वाला कोई न हो |

मैं तुम्हारी सभी कमियों को ओढने को तैयार हूँ ,मैं तुम्हारे विष रुपी कर्मो को पचाने के लिए तैयार हूँ क्योंकि तुम मेरे प्रिय हो |तुम मेरे आत्म हो ,तुम मेरे अपने हो ,तुम मेरे हृदय की धडकन हो |

दूसरो की तरह तुम केवल धन ,वैभव ,काम ,ऐश्वर्य में फसे हो क्या यह उचित है |मैंने तो हमेशा तुम्हे संपन्न देखना चाहा है पर आत्म उत्थान की बलि देकर सम्पन्नता प्राप्त करना मेरा उद्देश्य नहीं,अगर तुमने सम्पन्नता प्राप्त कर भी ले और तुम्हारी आध्यात्मिक झोली फटी रह जाए तो सब व्यर्थ है |

तुम्हे आध्यात्मिक धरातल पर उच्चता और श्रेष्ठता की स्थिति तक पहुंचाना चाहता हूँ ,मैं चाहता हूँ फिर तुम जैसा कोई दूसरा अन्य न हो ,तुम हो तो केवल तुम हो |

परन्तु यह स्थिति तभी प्राप्त हो सकेगी जब तुम समर्पण कर दोगे ,मुझमे पूर्ण रूप से एकाकार हो सकोगे ,जब तुम्हारे और मेरे बीच थोड़ी भी दूरी नहीं रहेगी ,जब तुम्हारे कण -कण में गुरु का वास होगा ,जब तुम्हारी हर श्वास में उसी का उच्चारण होगा |
और यह स्थिति प्राप्त करने का सरलतम उपाय है गुरु मंत्र |निरंतर गुरु मंत्र जप द्वारा तुम उस स्थिति को प्राप्त कर सकते हो जबकि गुरु और शिष्य में इंच मात्र की भी दूरी नहीं रहती |ऐसा तुम कर पाओ यही मेरे कामना है |

Tuesday, August 30, 2011

mantra mulam guru vakayam

"मन्त्र मुलं गुरु बाक्यम"
स्वामी विवेकानंद , के छोटे गुरु भाई स्वामी विज्ञाना नन्द (जोकि उम्र में स्वामी जी से बहुत ही छोटे थे ) बेलूर मठ में कुछ काम करा रहे थे , तभी स्वामी जी का वहां आगमन हुआ , पता नहीं बात चीत के सिलसिले में स्वामी विज्ञाना नन्द के मुह से निकल गया .आप तो गुरुदेव की बातों के विपरीत काम करते हैं , स्वामी विवेकानंद जी कदाचित कुछ गुस्से में आ गए बोले मैंने कौन सा काम विपरीत किया हैं .
विज्ञानं जी बोले ठाकुर का स्पस्ट आदेश था की कामिनी से दूर रहो पर जैसा की हमें पता चला हैं की आप इंग्लैंड और अमेरिका प्रवास में इन के के साथ ही रहते थे, यह तो विपरीत बात हैं .यह तो आपने ठीक नहीं किया . कदाचित गुरु आज्ञा का उल्लघन हैं
इस बात को सुनते हो स्वामी जी का चेहरा मानो क्रोध से लाल तप्त हो गया , यह देख कर विज्ञाना नन्द जी वहां से भाग निकले और स्वामी ब्रम्हानद जी के पीछे जा छुपे , और उन्हें सारी बात बता दी बोले की स्वामी जी मुझे ढूढ़ते आ रहे हैं मुझे बचाए ..
जब स्वामी जी , विज्ञाना नन्द जी को ढूढ़ते हुए वहां आये तो बोले सामने आ .
ब्रम्हानद जी बोले , नरेन्द्र वह बच्चा है न , कुछ बोलना चाहता था पर गलती से कुछ बोल गया , पर तुम तो समझदार हो , बच्चे को माफ़ करो .
यह सुनते ही स्वामी जी शांत हो गए ( परमहंस जी के इन दोनों शिष्यों में आपस में अपार स्नेह था ).
फिर शांत हो कर बोले विज्ञानं …यहाँ…. आ,,, .
देख बेटा ठाकुर ने तुम लोगों से जो बोला हैं उसका पालन तुम लोग करो . मेरे मन से ,ह्रदय से ,मेरी दृष्टी से उन्होंने स्त्री पुरुष की भेद दृष्टी ही अपनी महत कृपा से मिटा दी हैं अब मेरे लिए सब इश्वर कि संतान हैं ओर कोई भेद नहीं हैं इसलिए में वह करूँगा या आज तक किया हैं जो ठाकुर ने मुझे बोला हैं कहा हैं उनकी मनसा हैं , समझा तू .
स्वामी विज्ञानं ने स्वीकार कर लिया ,
(ध्यान रहे जब स्वामी जी ,विदेश प्रवास में थे तब उनके बारे में कुछ गलत सलत सुन कर दूसरों की कौन कहे, स्वयं मठ वासियों के मन में भी संदेह आ गया था , तब गिरीश चन्द्र घोष जो बंगाल के रंग मच के प्रख्यात कर्मी थे ओर सभी गुरु भाइयों मे वरिष्ठ थे , यह सब अनर्गल बाते उन्होंने सुन कर कहा था , मेरे नरेद्र तो प्रातः कालीन निकले मख्खन के सामान शुद्ध हैं , जिस दिन उसमे दोष देखूँगा उस दिन वह मेरी ही आखों का दोष होगा .)
इसलिए मित्रों ,सदगुरुदेव भगवान् ने किस किस शिष्य को क्या क्या आज्ञा दी , यह तो वहीँ जाने , क्योंकि उन्होंने अपने हीओ दिव्य कर कमलो से कितनो का जीवन पवित्र किया हैं वह सोचना या जानना हमारा कार्य नहीं हैं , पर एक बार अपने ह्रदय पर निष्पक्ष रूप से हाथ रख कर साफ़ मन से देखें ,उनकी क्रिया का कुछ तो समझ आ ही जायेगा,
यह सोचना की जो हम बच्चो को आज्ञा दी हैं क्या वही आज्ञा उन्होंने अपने सन्यासी शिष्यों को दी होगी सोच कर देखें ,फिर उनकी दिव्या बचनो मेसे हम कुछ अपनी पसंद के चुन चुनकर सभी के लिए कहना या सब पर मानदंड बनाना कितना सही हैं (पहले हम तो शिष्यता का पहला अक्षर पढ़ ले ,)वह तो हमारा ह्रदय ही समझ सकता हैं यदि हम समझना चाहे तो ..