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Saturday, July 30, 2011

what is shradha?




श्रधा क्या होती है ? ,आपने देखा होगा की जब सर्दी का मौसम होता है तो मानसरोवर झील पूरी बर्फ से ढक जाती है ऐसा मैदान बन जाता है की वहा फूटबाल खेल सकते है ,उस समय हंस उस मानसरोवर से उड़ते हैं और 3000 मील दूर एक पेड़ का आश्रय लेते है तवांग झील का आश्रय लेते है और तवांग झील ही एक ऐसे झील है जिसका पानी सर्दियों में भी गर्म रहता है ,3000 मील दूर ,1-2 हजार नहीं ,कहाँ मानसरोवर कहाँ तवांग और वे हंस ३००० मील उड़कर तवांग झील में आश्रय लेते है और उसी पेड़ पर आश्रय लेते है पिछले वर्ष जिस पेड़ पर रुके थे ,उससे पिछले वर्ष जिस पेड़ पर रुके थे ,वे पेड़ नहीं बदलते अगर पेड़ हरा -भरा है तब भी और अगर सर्दियों में उस पेड़ के पत्ते पूरे जाध जाते है तब भी वे हंस उसी पेड़ का सहारा लेते है |पक्षियों में भी इतनी समझ होती है और हम इतने गए बीते है की आज इस गुरु को बनाते है ,कल उस गुरु को बनाते है.आज हरिद्वार में गुरुको बनाते है तो कल देहरादून में एक गुरु को बनाते है ,तो कभी लखनऊ में गुरु को बनाते है रोज एक -एक पेड़ बदलते रहते है और आपकी जिन्दगी भटकती रहती है |पर हँसे कभी पेड़ नहीं बदलते चाहे हरा भरा पेड़ है तब भी और यदि सूख कर डंठल ,पेड़ रह जाए तब भी क्योंकि वह जानता है की आश्रय मुझे मिलेगा तो बस यही मिलेगा ,इसको श्रधा कहते है.आपने आप को पूरी तरह गुरु में निमग्न कर देने की क्रिया ,गुरु ज्यादा जानता है क्योकि वह ज्यादा विवेकवान है ,बुद्धिमान और ज्ञानवान है और वह व्यक्ति इतना गया बीता नहीं है ki शिष्य ke rin ko pane उपर लेकर मरे और व्यक्ति की मुक्ति हो ही नहीं सकती अगर उस पर ऋण है और गुरु भी कभी सिद्धाश्रम नहीं जा सकता अगर उस पर शिष्य का ऋण है तो अगर तुम पानी का एक गिलास भी लाकर मुझे पिलाता है तो तुम्हारा मुझ पर ऋण चदता है और गुरु कुछ न कुछ अनुकूलता शिष्य के जीवन में देकर वह ऋण उतारता रहता है |इसलिए तुम्हे गुरु को जांचने की जरूरत नहीं है तुम्हे खुद को जाचने की जरूरत है क्या तुममे श्रधा है ,शिष्यत्व है,तुम सीधे ही गुरु बनने की कोशिश करते हो मैं सोचता हूँ पहले सही अर्थो में शिष्य तो तुम बन जाओ|जिसमे ज्ञान होगा वह सदा शिष्य ही बना रहना चाहेगा | आज भी मैं आपने गुरुदेव के लिय तड़पता हूँ,गुरु बन कर आपको ज्ञान देने की मेरे कोई इच्छा नहीं ,मैं तो चाहता हूँ की मैं शिष्यवत अपने गुरुदेव के चरणों में बैठू |जब मैं सिद्धाश्रम जाता हूँ तो वहा के सन्यासी शिष्य कहते है की गुरुदेव आप वहा क्या कर रहे है ,क्या वहा कोई शिष्य है क्या उन लोगो में आप के लिए श्रधा है? मैं उन लोगो को प्यार करता हूँ और उन लोगो से ज्यादा आप लोगो को भी प्यार करता हूँ इसलिए मैं आप लोगो के बीच में हूँ |आप के लिए मैं उन सिद्धाश्रम के योगियों से विद्रोह कर रहा हूँ की मैं उनको लेकर आउंगा | मैं यह प्रयत्न कर रहा हूँ तो गुरुदेव के साथ चलते रहना आपका भी कर्तव्य है ,उनके चरणों को आंसुओ से नहला देना भी आपका धर्म है |यही धर्म है न हिन्दू धर्म है न मुस्लिम न इसै धर्म है जब गुरु को आपने धारण कर लिय तो वाही आपका धर्म है ,उसके लिए मर मिटना आप का धर्म है ,मैं चाहता हूँ की आप पाखण्ड का डटकर विरोध करे अगर पाखंडी लोग इस तरहे से फैलते रहे तो आने वाले पीढ़िया दिग्भ्रमित हो जायेंगी की कहा जाए कहा ना जाए और नकली धातु पर अगर सोने का पानी चदा दे तो वह ज्यादा चमकती है वैसे ही तुम लोग भी पाखंडियो के चक्रव्यूह में फस जाते हो अगर तुम मेरा ऋण उतारना चाहते हो तो मैं तुम्हे आज्ञा देता हूँ की तुम पूरे भारत में फ़ैल जाओ ,पूरे भारत को एक परिवार बना देना है और पाखंडियो का जो मेरा नाम लेकर गुरु बनते है को जड़ से ख़त्म कर देना है तभी तुम अपने गुरु के ऋण को उतार पाओगे |

तुम्हारा गुरुदेव
निखिलश्वेरानंद