Saturday, December 31, 2011

What is the Tantra .. What is Kundalini

TANTRA KYA HAI ???
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तंत्र क्या है..कुंडलिनी क्या होती है....क्या होती है इसकी जाग्रत और सुप्त अवस्था....साधक कैसा होता है....और योगी कैसा होता है....क्या इन दोनों में कोई भेद है....क्या है दिव्या भूमि या देव भूमि....और सिद्ध स्थिति कैसी होती है....ऐसी कौन सी क्रिया हो सकती है जो उपरोक्त प्रश्नों को ना सिर्फ सुलझा दे बल्कि यथाचित वो उत्तर भी दे जो सर्व माननीय हो...
किसी भी चीज़ को समझने के लिए कम से कम आज के युग में ये बहुत जरुरी हो गया है की कही गयी बात के पीछे कोई ठोस तर्क काम करता हो और यही स्थिति आज तंत्र के क्षेत्र में भी बनी हुई है...अपनी अपनी जगह पे हम सब जानते हैं की कोई भी साधना शुरू करने से पहले हमे इस बात को जानने की जल्दी होती है की इससे लाभ क्या होगा...तो मेरा अध्ययन मुझे बताता है की तंत्र ही जीवन है, ये कोई कोरी कल्पना नहीं बल्कि एक ठोस ज्ञान है. ज्ञान केवल तब तक ज्ञान रहता है जब तक की वो पूरी तरह से आपकी पकड़ में नहीं आ जाता पर जैसे ही आप उसके अंश विशेष को जानकर उसे अपने आधीन कर लेते हैं तो वही ज्ञान...विज्ञान बन जाता है, वो विज्ञान जिसमें आपका जीवन परिवर्तन करने की क्षमता होती है. तंत्र भी एक ऐसा ही विज्ञान है पर हम इसमें विजयी हो सके उसके लिए जरूरी है कुंडलिनी जागरण. हम सब जानते हैं की हमारे शरीर में इड़ा (जो की चंद्र का प्रतीक है), पिंगला (जो सूर्य रूप में है) और सुष्मना (जो चन्द्र और सूर्य में समभाव स्थापित करती है) विधमान हैं जो क्रम अनुसार दक्षिण शक्ति, वाम शक्ति और मध्य शक्ति के रूप में हैं...और इन शक्तियों का त्रिकोण रूप में जो आधार बिंदु है वो शिव है पर ये बिंदु सिर्फ बोल देने से शिव रूप नहीं ले लेता इसके लिए तीनो त्रिकोनिये शक्तियों को जागृत होना पड़ता है अर्थात शिव तभी अपने चरम रूप में जाग्रत होते है जब तीनो शक्तियाँ जो की आदिशक्ति माँ काली, माँ तारा और माँ राजराजेश्वरी के रूप में हैं वो जागती हैं क्योकि शक्ति के बिना शिव अधूरे हैं .माँ काली की जाग्रत अवस्था में शिव या बिंदु के शिवमय होने की प्रथम स्थिति है...पर इस वक्त शिव शव अर्थात क्रिया हीन रहते हैं...माँ तारा के जाग जाने से शिव अपने श्व्त्व में चरम रूप में होते हैं और राजराजेश्वरी माँ के जागने से शिव का श्व्त्व तो भंग हो जाता है पर वो निंद्रा में चले जाते हैं पर एक साधक के लिए ये पूरी प्रक्रिया कुंडलिनी जागरण ही होती है क्योकि इसमें भी नाभि कुंड में स्थापित कमलासन खुलता है पर राजराजेश्वरी माँ भगवती उसमें विराजमान नहीं होती वो विराजमान होती है गुरु कृपा से...और जब गुरु की कृपा दीक्षा या शक्तिपात से प्राप्त हो जाती है तो स्थिति बनती है आनंद की, विज्ञान की और फिर सत्य की...जिसे योगी अपनी भाषा में खंड, अखंड और महाखंड की अवस्थिति में वर्णित करते हैं....जहाँ हम में और हमारे इष्ट में कोई भेद नहीं होता है वो मैं और मैं वो बन जाते हैं....

Large heart side Tntrokt Gnpti spiritual awareness

Large heart side Tntrokt Gnpti spiritual awareness
विशाल हिरदे पक्ष जागरण की तन्त्रोकत गणपती साधना –

साधना में सिद्धि मिलने में तब तक शांशय बना रहता है जब तक हिरदे पक्ष जाग्रत न हो इस लिए सर्व प्रथम हिरदे पक्ष को जगाना चाहिए विशाल हिरदे पक्ष जागरण से ही सिद्धि के दुयार स्व खुल जाते है !और विशाल हिरदे पक्ष जाग्रत होते ही भीतर से खुशी प्रगट होती है और अनाहद चक्र स्व खुल जाता है !अंदर से जब खुशी प्रगट हो तो साधक का मन भीतर से खिल उठता है !वोह अंदर से खुल के हस्ता है पर बाहर सामन्या ही दिखता है !और आगे के चक्रो की यात्रा स्व शुरू हो जाती है !बिना विशाल हिरदे पक्ष जगाए सहसार चक्र को जगाना मुशकल होता है और विशुद चक्र भी जगाना बहुत मुशकल होता है !जहां तक मेरा तजुरबा है इस विशाल हिरदे पक्ष जगाने की सभी से अनुमूल कृति गणपती साधना में है !यह साधना मेरी स्व की अनुभूत है !और इस का प्रयोग मैंने एक गुरु भाई को भी कराया था ! उसे भी अंदर से परम खुशी का एहसास हुया और आज वोह साधना के एक विशिष्ट मुकाम पर है !
स्मानया अवसथा में कुंडलिनी मणिपुर चक्र पे जा कर रुक जाती है ! उसे आगे के लिए गतिमान करने के लिए विशाल हिरदे पक्ष जागरण जरूरी है !इस साधना से मन पे पड़ा माया का पर्दा हट जाता है और साधक को दिव्य अनुभूति होती है ! उसे साधना में होने वाली कमी का स्व एहसास हो जाता है और मन को एकाग्रता मिल जाती है !इस लिए यह एक जरूरी साधना समझते हुये पोस्ट कर रहा हु आशा है आप सभी इस से लाभ उठाए गे और सद्गुरु जी के ज्ञान को हिरदे में वसाते हुए साधना मार्ग को प्रकाशित करेगे ! इस साधना को पूर्ण दिल से करे और प्रथम वार ही सफलता मिल जाती है आगे की साधनयों का मार्ग सुलव हो जाता है यह बात मैं पूरे मनोयोग से कहता हु !
साधना विधि –
1 इस साधना को शुक्ल पक्ष के किसी भी सोमवार को शुरू करे !यह 11 दिन की साधना है !
2 इस साधना में आप सफ़ेद वस्त्र धारण कर सफ़ेद आसन पे उतरा बिमुख हो कर बैठे !
3 अपने सहमने गणपती विग्रह और गुरु चित्र साथपित करे ! गणपती की मूर्ति कोई भी ले सकते है अगर छतर वाली मूर्ति मिल जाए तो अति उतम है!
4 गुरु स्मरण कर संकल्प करे के मैं अपने मन के सभी विकारो पे विजय पा कर अपने विशाल हिरदे पक्ष को जगाना चाहता हु हे गुरुदेव आप मुझे सफलता प्रदान करे त के मैं साधना मार्ग पे एक गति के साथ वढ़ स्कू ! इतना कह कर जल छोड़ दे और गुरु पूजन करे फिर गणेश पूजन कर निम्न मंत्र की 21 माला करे !
5 जब आपको भीतर से ऐसा लगे की आप खुल के हसना चाहते हैं ! अंदर से एक खुशी का एहसास हो तो समझ ले साधना सफल हुई है ! इस साधना से गणपती के बिबांत्मिक दर्शन भी हो जाते है !
6 इस साधना में आप कोई भी माला ले ले अगर सफटिक मिल जाए तो और भी उतम है !अगर गणपती की मूर्ति न हो तो चित्र पे भी साधना कर सकते है !
7 पूजन के दौरान शुद्ध घी का दीपक जलता रहना चाहिए !
8 साधना के बाद माला को गले में कम से कम 21 दिन धारण जरूर करे और विग्रह जा चित्र को पुजा स्थान में रख दे ! शेष पूजन सामग्री को जल परवाह कर दे !
मंत्र --- ॐ ग्लाम ग्लीम ग्लोम गं गणपतिय नमः!!
Manta – om glam gleem gloum gam ganpatye namah :!

गणेश मोहिनी साधना Ganesh siren Silence

गणेश मोहिनी साधना –
मोहिनी साधनए तो बहुत है इन सभी में गणेश मोहिनी साधना श्रेष्ट कही गई है वैसे तो मोहिनी साधनए अपना पूर्ण प्रभाव रखती है इन में से श्री गोरखनाथ मोहिनी ,शाह हजरत अली की सुलेमानी मोहिनी ,मोहमंद सहब की शाम कोर मोहिनी और पंज पीर मोहिनी प्रयोग वीर हनुमान मोहिनी रतड़ी मोहिनी बीबों मोहनी साबर साधनायों में बेमिसाल मानी गई है ! जहां मैं गणेश मोहिनी दे रहा हु यह मेरी अनुभूत साधना है ! ऐसी साधनाए मिलना भी सोभाग्य माना जाता है साबर साधना, साधना के हर पहलू को उजागर करती है! चाहे वोह वीर साधना हो जा यक्षणी साधना साबर तंत्र आश्चर्ज से भरा हुया है !साधना तो दे रहा हु पर किसी भी हालत में इसका गलत प्रयोग न करे अथवा परिणाम भी आपको भुगतने पड़ेगे मैं जहां साधको की जिज्ञाशा के लिए यह अनुभूत साधना दे रहा हु कोई भी तर्क कुतर्क माईने नहीं रखता क्यू के इसे मैं स्व परख कर ही दे रहा हु यह साधना मुझे वावा श्याम जी से प्राप्त हुई थी बहुत ही बेमिसाल साधना है! यह किसी भी असभव कार्य को सभव करने का बल रखती है !इसे करने के लिए अनुष्ठान करना पड़ता है यह एक दिन की साधना है !और इसे घर में नहीं करना है घर में करने से फलदायी नहीं होगी यह बात आप याद रखे !एक शकश था कनेडा में उसकी बेटी को उसी के जवाई ने जहर दे दिया था और उल्टा केश भी कर दिया था बेटी तो बच गई लेकिन केश का फैसला नहीं हो पा रहा था! वकील भी दलीले दे कर हार गया था तभी वोह मिला उस की समस्या के निवारण के लिए यह प्रयोग किया वहाँ के जज और वकील सभी समोहित हो गए थे और फैसला उसी के हक़ में हो गया और उसके जवाई को 18 बर्ष की कैद हो गई यह बात 2006 की है !इस लिए कोई ऐसा काम जो आपसे न हो पा रहा हो जैसे दफ्तर में नोकरी में प्रेशानी कोई उतपन करता है जा घर का महोल आपके अनुकूल नहीं है तो यह साधना राम बाण की तरह असर करती है !इस से किसी भी व्यक्ति को बश में कर अपना काम निकाला जा सकता है पर यह बात भी जरूर कहनी चहुगा किसी भी हालत में किसी लड़की की ज़िंदगी खराब न करे वरना इसका उलट असर भी हो जाता है !
विधि –इस के लिए स्मगरी ले उस में निम्न वस्तुए 10-10 रुपेए की लेकर मिला ले !
1 –स्लीरा
2-लाल चंदन पाउडर
3-सफ़ेद चंदन पाउडर
4 बादाम
5 शुयायारे
5 गिरि गोला
6 किसमिस
7 सरियाला
8 अगर
9 तगर
और जटा मासी और एक 1.50 किलो हवन स्मगरी आधा किलो तिल काले,
यह समान किसी भी पंसारी की दुकान से आसानी से मिल जाता है ! अगर कोई चीज न भी मिले तो भी कोई बात नहीं आप हवन में फूल मखाने और कमल गट्टे भी मिला सकते हो और एक कटोरी शकर और आधा किलो शुद्ध घी मिला कर समग्री तयार कर ले और इस हवन के लिए आम की लकड़ चाहिए अब किसी भी नजदीक जंगल में जा कर रात्री को गणपती का पूजन और उस के बाद 1100 आहुति देनी है इस मंत्र से ऐसा करने से साधना सीध हो जाती है हवन करते हुए इस बात का ख्याल रखे के जंगल को आग न लगे इस लिए जा तो निर्जन सथान जा नदी का किनारा भी बेहतर है !रात 9 व्जे के पहचान्त हवन शुरू करे इस में तीन घंटे से ज्यादा का समय लग जाता है ! भोग के लिए पाँच लड्डू रख ले और पुजा के पहचान्त साधना पूर्ण होने के बाद उहने वोही छोड़ दे और घर आ जाए जा जहां आपने स्टे की है वहाँ आ जाए ! स्ंदुर की एक डीबी साथ ले जाए और उसे खोल कर पास रख ले जब साधना पूर्ण हो जाए तो उसे साथ ले आए इस का तिलक सभी को समोहित कर देगा!
जहां एक बात जरूर कहनी चाहुगा कई लोग अपनी अनुकूलता के लिए साधना के नियम बना लेते है जब परिणाम सही नहीं मिलते तो साधना को गलत कह देते है इस लिए साधना में दिये हुये नियमो की पालना अनिवार्य है ! इसे किसी भी शुक्ल पक्ष के मंगल वार करे !
साधना करने से पूर्व गुरु पूजन कर आज्ञा ले ले और फिर जंगल में जा कर रात 9 से 1 वजे तक साधना संम्पन कर ले इस में किसी प्रकार की हानी नहीं होती इस लिए सभी ड़र दिल से निकाल दे !
साबर मंत्र –
ॐ गणपती वीर वसे मसान ,जो मैं मांगु सो तुम आन !
पाँच लड्डू वा सिर संदूर त्रीभुवन मांगे चंपे के फूल!
अष्ट कुली नाग मोहा जो नाड़ी 72 कोठा मोहु !
इंदर की बैठी सभा मोहु आवती जावती ईस्त्री मोहु !
जाता जाता पुरुष मोहु ! डावा अंग वसे नर सिंह जीवने क्षेत्र पाला ये!
आवे मारकरनता सो जावी हमारे पाउ पड्न्ता!
गुरु की शक्ति हमारी भगती चलो मंत्र आदेश गुरुका !

Third Eye and Yoga तीसरा नेत्र और योग

तीसरा नेत्र और योग

भगवान शिव की ही तरह हर मनुष्य के दो समान नेत्रो के मध्य में तीसरा नेत्र होता है जिसके माध्यम से उसे वो सब दृश्य भी सहजता से दिखने लगते हैं जिन्हें साधारण आँखों से देख पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है क्योकि जरा सोच के देखिये यदि शिव का तीसरा नेत्र प्रलय लाने में सक्षम है तो इसमें कुछ तो ऐसी विशेषता और विलक्षणता होगी जो ये सहजता से हर किसी से के मस्तिष्क में जाग्रत नहीं होता.... इसको खोलने और कार्यरत करने के लिए जरूरत होती है एक लम्बे तथा कड़े अभ्यास की और उस से भी ज्यादा एक योग्य सद्गुरु की क्योकि सद्गुरु के बिना और कोई नहीं जानता की शरीर के किस हिस्से में कौन सा बिंदु स्थापित होता है और किस बिंदु को स्पर्श करने से ये सुप्त से जाग्रत अवस्था में आ जायेगा.
योग शास्त्र के अनुसार हमारे आज्ञा चक्र में ही कुल मिला के ३२ बिंदु होते हैं जिन्हें “ ज्योतिर्बिंदु “ कहा जाता है और आगे चल के इन ३२ बिंदुओं को १६-१६ समान भागो में बाँट दिया जाता है. ये १६-१६ बिंदु समान भाव से आध्यात्म और सांसारिक भाव का स्पष्टीकरण करते हैं. जो १६ बिंदु आध्यात्मिक भाव को प्रकट करते हैं उन्हें “ शक्ति बिंदु” कहा जाता है. अब जैसे की हम जानते हैं की शक्ति और शिव एक दुसरे के बिना अधूरे हैं तो ये जो शिव बिंदु है वो स्थापित होता है सद्गुरु के हाथ के अंगूठे में.....असल में हमारे आज्ञा चक्र की तरह ही गुरुदेव के हाथ के अंगूठे में भी ३२ बिंदु स्थापित होते हैं जिन्हें “ शिव “ की गणना दी जाती है.
अब प्रश्न ये आता है की इस शिव और शक्ति का योग कैसे हो तो उसका एक सीधा और सरल उपाय है सद्गुरु से “ उपनयन दीक्षा “ की प्राप्ति क्योकि इस दीक्षा के मिल जाने से हमारे अंदर की सारी त्रुटियाँ स्वतः ही खत्म होने लगती है और हमारे अंदर तीसरे नेत्र को जाग्रत करने के लिए अति आवश्यक क्रिया अपने आप होने लगती है जिसे तीन भागो में बांटा जा सकता है......
१- इच्छा शक्ति २- क्रिया शक्ति ३- ज्ञान शक्ति
ये इच्छा शक्ति प्रतीक है “ सद्गुरु “ की, क्रिया शक्ति नेतृत्व करती है “ मंत्र “ का और ज्ञान शक्ति से सार्थकता मिलती है “ साधना पद्धति “ को.
सद्गुरु द्वारा शिष्य के आज्ञा चक्र को छू लेने से जब शिव और शक्ति एक साथ कार्यरत होते हैं तो तांत्रिक कुंडलिनी योग के माध्यम से हमारा तीसरा नेत्र जाग्रत होने लगता है और हमें वो सब दिखने लगता है जो आम मनुष्य के लिए किसी और लोक की बाते है. इसी तरह लाया योग से हम अपने दिमाग को अपने नियंत्रण में कर सकते हैं जिससे एक बार देखि,सुनी या पढ़ी गयी चीजें फिर कभी नहीं भूलती. समाधि योग हमें उस परम सत्ता से एकाकार करा देता है और हम जीवन मृत्यु से मुक्त हो जाते हैं.

Chinnmsta secret छिन्नमस्ता रहस्य

छिन्नमस्ता रहस्य
साधक और उसका आराध्य ये दोनों मिलकर एक ऐसी सत्ता का निर्माण करते है जिसका कण-कण लाखों करोड़ों ज्योतिपुन्जों से ज्यादा प्रकाशमान, शक्तिमान और ऊर्जावान होता है....ऐसी स्थिति में साधक का जीवन एक आम आदमी की तरह जन्म की किलकारी से शुरू होकर चिता की राख के साथ खत्म नहीं हो जाता क्योकि वो अपनी आखिरी नींद लेने से पहले ही परम-आनंद की अनुभूति कर चुका होता है....और ये आत्मा को तृप्त करने वाला आनंद उसे तब प्राप्त होता है जब दैवी शक्तियों के साथ उसका एकाकार हो जाता है.
किसी भी दिव्य सत्ता को आत्मसात करने के लिए तीन नियम हमेशा एक साधक को याद रखने चाहियें-
१-साधक को अपने आप को अपने इष्ट के चरणों में विसर्जित कर देना चाहिए.
२-उसका संकल्प पक्का होना चाहिए की चाहे पृथ्वी आपना मार्ग बदल दे पर मैं आपने अभीष्ट को पा कर ही रहूँगा.
३-अपने आराध्य के साथ साथ उसका खुद पर भी विशवास होना चाहिए की मैं ये कर सकता हूँ और करूँगा ही.
छिन्नमस्ता माँ की साधना को दसों महाविद्याओं में सबसे श्रेष्ठ माना गया है क्योकि एक तो ये शीघ्र फल देने वाली है और दूसरा ये दो तरह से आपने साधक के शत्रुओं का नाश करती है. अब हम सोचे की ये दो शत्रु कौन है तो-
१-बाहरी शत्रु- जैसे हमारे सब के कोई ना कोई होते ही हैं...
२-मानसिक शत्रु काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार- ये जितने भी हमारे दुश्मन हो सकते हैं उनमें से सबसे खतरनाक श्रेणी है क्योकि जब ये शत्रुता निकालते है तो विनाश को कोई नहीं टाल सकता....सिर्फ एक पल के लिए मन में मोह आ जाए तो हम हाजारों मील अपने प्रेम से दूर हो जाते हैं और इससे बड़ी शत्रुता और क्या होगी की हमे हमारे लक्ष्य से कोई दूर कर दे.....सदगुरुदेव से प्रेम ही तो हम सब का लक्ष्य होना चाहिए.
इसमें कोई दो-राये नहीं है की ये साधना यदि हमें सिद्ध हो जाए तो हममें असंभव को संभव करने की क्षमता आ जाती है पर एक बात का हमेशा ख्याल रखना चाहिए की ये क्षमता हम में तभी आ पाएगी, हम तभी माँ छिन्नमस्ता को खुद में आत्मसात कर सकेंगे यदि हम वीर भाव के साधक है तो....गिदगिड़ाने से भीख अवश्य मिल सकती है पर उपलब्धि नहीं. उपलब्धि के लिए आँखों में विजय भाव दिखना चाहिए.
माँ छिन्नमस्ता के तीन नाम है-
१- छिन्नमस्ता “ ये साधारण साधको के लिए है”
२- प्रचंड चण्डिका “ ये वीर भाव युक्त साधको के लिए है”
३- छिन्नमस्तिका “ ये दिव्य भाव की साधना है”
और माँ का मस्तक कटा स्वरूप जो हम अक्सर चित्रों में देखते हैं वो माँ का ब्रह्मांडीय स्वरूप है जिसकी एक झलक भी दुर्लभ है.
इन तीनो भावो की साधना के लिए एक ही मंत्र है जिसका जप २१ दिनों तक रोज ११ माला करना होता है. ये रात्कालीन साधना है अर्थात रात को करनी चाहिए जब आपकी चेतना को कोई हिला ना सके, आसन लाल होना चाहिए और आपके वस्त्र भी लाल होने चाहिए. इस मंत्र को लाल हकीक, मूंगा या सांप की हड्डियों से बनी माला से करना चाहिए और दीपक तेल का जलाना चाहिए और आपकी दिशा दक्षिण होगी.
मंत्र-
ओम हुम वज्र वैरोच्नीये हुम फट
साधना शुरू करने से पहले सदगुरुदेव का आशीर्वाद लेना ना भूलें क्योकि हम सब की सफलता उन्ही की प्रसन्नता और आशीर्वाद पे टिकी है.

mangal your married life and home

आपका वैवाहिक जीवन और मंगल गृह

मंगल गृह को लेकर वैवाहिक जीवन मे अनेक प्रकार कि भ्रान्तिया फ़ैलि हुइ है।वर और वधू कि कुंडली मे यदि लग्न, चतुर्थ्, सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भाव मे मंगल हो तो कुण्डली मंगली होती है। यदि वर या वधू कि कुण्डली मे उपर दोष कथित स्थानो मे केवल एक कुण्डली मे दोष होगा तो दुसरा साथी के जीवन के जीवन का भय हो जायेगा। मन्गली दोष को लग्न / चन्द्र तथा शुक्र तीनो स्थानो से देखना चाहिये ऐसा शास्त्रो मे निर्देश है। चुंकि पाञ्च स्थानो मे मंगल के रेह्ने के कुछः दोष होता है अतः यदि तीनो स्थानो (लग्न, चन्द्र, शुक्र) से देखा जाये तो ५ * ३ = १५ स्थानो पर मंगल दोष बनता है।

लग्न चक्र मे १२ भाव ही होते है और मंगल १५ भावो (स्थानो मे दोषपूर्ण है व इसका अर्थ यह होगा कि संसार मे शायद ही ऐसी कोइ कुण्डली मिले जो मंगल दोष से रहित हो। इसी कारण "एसट्रोलोजिकल मेगझिन" के संपादक डा बि वि रमन ने लिखा है कि मांगलि दोष का हौवा न जाने कितने ऐसे विवाह् को जो सुखमय दाम्पत्य जीवन मे परिवर्तित होते, उन्हे नष्ट कर देता है।

महर्षि पाराशर के अनुसार गृहो का शुभाशुभ जानने के दो आधार है।
पेह्ला नैसर्गिक शुभ या अशुभ जैसे शनि, मंगल, राहु इत्यादि नैसर्गिक शुभ गृह है।
दुसरा आधार शुभता तथा अशुभता का भावधिपत्य द्वारा बताया गया है जैसे केन्द्र तथा त्रिकोन के स्वामि शुभ तथा छटे, आठवे, बारह्वे भाव के स्वामि अशुभ होते है। इसका स्पष्ठ अर्थ है कि परिस्थितिवश एक ही गृह चाहे नैसर्गिक या अशुभ ही भावातिपत्य कि परिस्थिति के अनुसार वह शुभ या अशुभ हो जाते है।

अतः वर या कन्या का लग्न क्या है उसके लिये मंगल ग्रह है शुभ या अशुभ यह भूलकर पांच स्थानों में से किसी एक स्थान पर मंगल को देखकर, मंगली दोष कि घोषणा कर देना ज्योतिष के मूलभूत सिद्धातों के अवहेलना तथा ज्योतिष शास्त्र को बदनाम करना है।

तात्पर्य यह कदापि नही है मंगल दाम्पत्य जीवन के लिये हानिकारक नही होता। मंगल के साथ् शनि, राहु, केतु, सूर्य भी हानिकारक होते है। अशुभ भावों के स्वामि होकर बृहस्पति, शुक्र, चन्द्र इत्यादि भी यदि सप्तम भाव मे बैठ जाये तो व भी विघटनकारी होते है। वास्तव मे सप्तम या अष्टम भाव मे अशुभ ग्रह कि स्थिति हानिकारक है और यह ज्योतिष के सिद्धान्त के अनुकूल भी है। यहि कारण है कि दक्षिण भारत के ज्योतिषि वर, कन्या कि कुण्डली मे सप्तम अष्टम 'शुद्धम' को श्रेष्ठ मानते है।

महर्षि पतंजलि ने योग दर्शन के 'साधन पाद' मे लिखा है ततः विपाको जाती अयुर्भोगाः अर्थात पूर्व जन्म के कर्मो के अनुसार प्राणी कि 'ततः विपाको जाति अयुर्भोगाः' अर्थात पूर्व जन्म के कर्मो के अनुसार प्राणी कि जाति (योनि जैसे मनुष्य योनि, पशु योनि, कीट योनि आदि) आयु और सुख-दुख प्राप्त होते है। ये गर्भ से ही निर्धारित होते है ज्योतिष मे सभी आचार्यो का स्पष्टः निर्देश है कि भविष्य बताने से पेहले आयु का विचार अवश्य कर लिया जाना चाहिये। अगर यह धारणा सही है कि पाति या पत्नी का मंगल एक-दुसरे को मार देता है तो एक समस्या उत्पन्न होगी, यदि कोइ अविवाहित व्यक्ति अपनी आयु के बारे मे जानना चाहे तो क्या ज्योतिषी उस यजमान कि आयु बताने के लिये यह कहेगा कि पेहले शादि कर लो फिर अपनी पत्नी कि कुण्डली लेकर आना तो आयु बतायेंगे?

ज्योतिषियो मे एक विचित्र सिद्धान्त प्रचलित है,वह यह कि यदि वर और कन्या मे से एक कि कुण्डली मंगली है और यदि दुसरे कि भी कुण्डली मे मंगल दोष है तो मांगलि का दोष दूर हो जाता है। यह कौन सा सिद्धान्त है शायद यह बात 'विषस्य विषमौषधम' आयुर्वेद के सिद्धान्त पर गढ ली गयी है। किन्तु आयुर्वेद विज्ञान के सिद्धान्त को ज्योतिष विज्ञान मे लागु करना वैसा ही है जैसे इनजीनियरिंग के सिद्धान्तों को मेदिचाल् साइंस मे थोप्ने का प्रयास।

ज्योतिष एक महाविज्ञान है हार विज्ञान मे जैसे सिद्धान्त होते है वैसे ही ज्योतिष के भी सिद्धान्त है। ज्योतिषीय समीक्षा के समक्ष उन सिद्धान्तों कि अवहेलना कर,मनमानि करने से ज्योतिष विज्ञान नही रुढिवाद हो जायेगा। यहि लांक्षन ज्योतिष पर लग रहा है अतः प्रत्येक विद्वान् ज्योतिषी का कर्तव्य है कि वह ज्योतिष से रुढिवादी लोगों का कोपभाजन बनना पडे। केहने का तात्पर्य यह है कि वर कन्या कि कुण्डली का मेलापक परम् आवश्यक है। मेलापक के अष्टकूट का वैज्ञानिक आधार है इस से वर कन्या का शारीरिक, मानसिक, भौतिक, आध्यात्मिक, संतान संबन्धी तालमेल की समीक्षा हो जाति है। इसके अलावा ग्रहो के आधार पर कन्या के आचरन कि समीक्षा, आयु समीक्षा, संतान भाव कि समीक्षा, क्षेत्र स्फ़ुट और बीज स्फ़ुट की समीक्ष, धन और भाग्य भाव की समीक्षा भी मेलापक मे तिहित है।

Mohini Devi मोहिनी देवी

मोहिनी देवी का अवतार भगवान विष्णु जी ने लिया था !जब शंकर जी ने भ्स्मा सुर को किसी को सिर पर हाथ रख कर भस्म करने की शक्ति प्रदान की तो वोह शंकर जी को कहने लगा के इस वारिदान का कैसे यकीन करू के यह शक्ति मुझ में आ गई है !तो शंकर जी ने कहा के परीक्षण करके देख लो तो उस ने कहा इस वक़्त तो आप ही पास हैं !इस लिए आप पर ही परीक्षण कर के देखता हु शंकर जी समझ गए और वहाँ से भैंसे का रूप धारण कर आगे आगे भागने लगे और एक परबत में टकर मार अपना सिर परबत में छुपा लिया जो के नेपाल जा कर निकला जहां भगवान पशुपति नाथ जी का मंदिर है !और जहां टकर मार के सिर छुपाया उस जगह को केदारनाथ जी के नाम से पुजा जाता है जहां पीठ पुजा होती है !और जब शंकर जी की आँख में अपनी यह साथिति देख आँसू टपक गए तो उन आंसूयों से रुद्राक्ष बृक्ष की उत्पाती हुई तब भगवान विष्णु जी ने मोहिनी अवतार लिया और भस्म सुर से कहाँ अब तो यह मर चुके है चलो इस का सोग मना लेते है फिर मैं तुम से शादी कर लूँगा तो वैन दल कर दोनों हाथो को पहले जंगों पे फिर छाती और अंत में सिर पर मार कर पीटने लगे जैसे आज भी औरते पीटती है तो सियापा (पीटना )वहाँ से शुरू हुया !जब भसमासुर का हाथ सिर पीआर गया तो भस्म हो गया इस तरहा इस अवतार में भगवान विष्णु जी ने शंकर जी को संकट से निकाला !
जब स्मून्दर मंथन के वक्त सूरो और असुरो में जंग होने लगी अमृत पाने के लिए तो भी भगवान इस रूप में आवृत हुए और अमृत का बंटन किया इस लिए मोहिनी एक श्रेष्ट विधा है !इस की ताव तो भगवान शंकर जी भी नहीं सहन कर पाये थे जब श्री भगवान शंकर जी ने मोहिनी रूप देखने की ईशा भगवान विष्णु जी से की तो भगवान ने सुंदर मोहिनी रूप धारा तो शंकर जी अपने आपको रूक नहीं पाये बीर्य पृथ्वी पे गिर गया !पृथ्वी उस की जलन से जलने लगी उस वक़्त अंजना माँ को एक ऋषि का श्राप मिला था के तुम कुमारी माँ बनोगी तो माँ अंजना ने अपने आपको एक बड़े से मटके में बंद कर लिया जिस में उपर एक छेद्ध था तो पवन देव ने उस वीर्य को उठा के व्हा ज्ञ तो आवाज की माँ अंजना उस छेद्ध में कान लगा कर सुनने लगी तो पवन देव ने उस वीर्य को उस छेद्ध के जरिए प्रवेश क्र दिया जिस से हनुमान जी का जन्म हुया और जेबी उन हाथो को गोबर में साफ किया तो उस में गुरु गोरख नाथ जी की उतपती बताई जाती है !यह कथा मैंने कुश सन्यासी लोगो से सुनी थी जो नाथ संपर्दय के थे ! इस लिए मोहनी अवतार श्रेष्ट है इस की साधना भी श्रेष्ठ है

Mysterious power of Mantra 1मंत्र शक्ति गूढ़ार्थ १

मंत्र शक्ति गूढ़ार्थ १
“शून्य” एक ऐसी सत्ता है जिसमें यदि पूरा ब्रह्मांड भी विलीन हो जाए तो उसे रत्तीभर भी फर्क नहीं पड़ेगा....पता है क्यों?? क्योकि ये एकमात्र ऐसी आधारभूत शक्ति है जिसके ना होने से पीछे कुछ बचेगा ही नहीं क्योकि अंत के लिए आरम्भ आवश्यक है. इसी तरह हमारे शास्त्रों में वर्णित मंत्रो का महत्व है....वो भी बिलकुल शून्य की तरह है. आप मंत्र को कैसे उपयोग कर रहे हो इससे मंत्र सत्ता को कोई फर्क नहीं पड़ता पर हाँ हमें इस बात से फर्क जरूर पड़ता है की वो मंत्र हमारे लिए कैसी स्थिति उत्पन्न कर रहे है या कर सकते है क्योकि हम जानते है की मंत्र शिव और शक्ति का मिलन है जो प्रतीक है उत्थान का और विध्वंस का भी .....
शिव और शक्ति की तरह मंत्र और सिद्धी भी एक साथ जुड़े हुए हैं....इसिलए यदि सिद्धी चाहिए तो इनसे जुड़े कुछ नियमों का पालन करना ही पड़ेगा क्योकि इनकी शक्ति अतुलनीय होती है. पिछले अंक में हमने जाना था कि मंत्र होते क्या है...इन्हें शक्ति कहाँ से प्राप्त होती है....उनका उच्चारण गोपन होना चाहिए या स्फुट. आज हम देखेंगे कि वेदोक्त और साबर मंत्रो को करने की विधि क्या होती है....और इनको करते समय किन तथ्यों को ध्यान में रखा जाता है.
किसी भी कार्य को करने से पहले उसकी भाव-भूमि का होना अति अनिवार्य है...क्योकि भाव से कल्पना जन्म लेती है और कल्पना से सच्चाई. ठीक इसी तरह किसी भी मंत्र को करने से पहले आपके भाव स्पष्ट होने चाहिए. श्मसान में यदि साधना के लिए बैठना है तो खुद मृत्यु बनना पड़ेगा तभी विजय हमारा वरण करेगी. ऐसी ही स्थिति होती है जब हम साबर मंत्रो को सिद्ध करने के लिए साधनारत होते है क्योकि इन मंत्रो को सिद्ध करना तलवार की धार पर चलने के समान है. जितनी सच्चाई इस बात में है कि ये मंत्र बहुत जल्दी सिद्ध होते है उतना ही बड़ा सच ये है कि किंचित मात्र भी यदि कहीं कोई त्रुटि रह गई तो.......तो खेल खत्म.
इसीलिए यदि आप पूरी तरह इनके प्रयोग के लिए सुनिश्चित नहीं हो तो इनका परीक्षण कभी ना करें और यदि कर रहे हो तो आपमें धैर्य होना अति आवश्य है.....तेज़ी आपके लिए हानिकारक हो सकती है. साबर मंत्रो में वाम मार्गी साधना का बहुत महत्व है पर वेदोक्त मंत्रो की तरह इनमें मांस और मदिरा का प्रयोग वर्जित है.....और एक और खास बात जहाँ साबर मंत्र सिद्ध किये जाए वहाँ वेदोक्त मंत्र कभी सिद्ध नहीं करने चाहिए. दोनों के लिए अलग अलग स्थान का चयन करना चाहिय क्योकि वेदोक्त मंत्रो के साथ साबर मंत्र कभी सिद्ध नहीं होते और कभी कभी तो विपरीत उर्जा के घर्षण से परिणाम विपरीत हो सकता है.
इसलिए इन मंत्रो को पुस्तकों से प्राप्त कर सिद्ध नहीं किया जा सकता.....इसके लिए आवश्कता होती है योग्य गुरु की क्योकि साधना का मार्ग कोई आसान मार्ग नहीं है.....इसमें बीच का कुछ नहीं होता ......या तो इस पार या उस पार.

मंत्र शक्ति गूढ़ार्थ
हमारे द्वारा बोले गये हर शब्द की अपनी एक सत्ता होती है क्योकि शब्द ब्रह्म होते है और ब्रह्म अटल होता है. जैसे एक एक वर्ण के सुमेल से एक निश्चित अर्थपूर्ण स्थति जन्म लेती है वैसे ही एक एक वर्ण के शिव और शक्ति के स्वरूप में मिलन से उत्पन होते हैं “ मंत्र “ जिनमें हमारे जीवन को बदलने की क्षमता होती है क्योकि मंत्र मात्र शब्दों की एक श्रंखला को नहीं कहते......इनमें प्राण ऊर्जा होती है क्योकि ये शिव,शक्ति और अणुओं के संयोजन से बनते हैं ,जो की आधार हैं सृजन और संहार का, इसी वजह से इनमें भोग और मोक्ष दोनों देने की क्षमता होती है.
अब प्रश्न आता है की मंत्रो का रूप कैसा होता है? ये आकारात्म्क होते हैं या निराकार? और कार्य को करने की शक्ति इन्हें कहाँ से प्राप्त होती है? तो सदगुरुदेव ने इन् प्रश्नों का उत्तर बहुत ही सरल भाषा में समझाया है की देह मलीनता युक्त होती है इसलिए दिव्यता इसमें वास नहीं कर सकती अब चूँकि मंत्र देव भूमि से संबंधित होते है तो ये आकार रहित होते हैं और इन्हें शक्ति मिलती है हमारे अन्तश्चेतन मन से क्योकि आसन पर बैठते ही साधक साधरण से खास और मनुष्य से देव और अंत में शव से शिव बन जाता है इसलिए जैसे ही साधक अपनी साधना प्रारम्भ करता है तो उसकी अन्तश्चेतना से एकाकार करके मंत्र प्राणमय हो जाता है.
पर इस बात को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए की हर किसी में अन्तश्चेतना एक जैसे जाग्रत नहीं होती. किसी में इसका स्तर कम होता है, किसी में ज्यादा तो किसी में ना के बराबर. तो क्या इसका अर्थ ये हुआ की जिसकी अन्तश्चेतना कम जाग्रत है वो मंत्र को प्राण ऊर्जा दे ही नहीं सकता?......नहीं, ऐसा नहीं है पर इस प्रश्न के उत्तर के लिए हमें मंत्रो की किस्मों और उच्चारण की विधि को समझना होगा. मंत्र आम तोर पर तीन किस्म के होते हैं –
वेदोक्त मंत्र, सर्वविदित मंत्र, और साबर मंत्र........पर इनमें से पहले और तीसरे क्रम को ज्यादा महत्व दिया जाता है. अब क्योकि साबर मंत्र “ मंत्र और तंत्र “ से मिलकर बनते है तो इन्हें सिद्ध करना आसान होता है पर इसके बिलकुल विपरीत वेदोक्त मंत्रो को सिद्ध करने के लिए साधक में धैर्य और विश्वास का होना अति आवश्यक है क्योकि इन मंत्रो का आधार ध्वनि होती है. उच्चारण ध्वनि में लेशमात्र भेदभाव इन्हें अर्थहीन बना देता है. इसीलिए इनमें ध्वनि के महत्व को समझते हुए हमारे ऋषिमुनियों ने ध्वनि के आधार पर इन मंत्रो को दो भागो में बांटा है- “गोपन मंत्र” अर्थात चित युक्त मंत्र और “स्फुट मंत्र” मतलब ध्वनि युक्त मंत्र. चित युक्त मंत्रो में साधक को मंत्र का उच्चारण मन ही मन में करना चाहिए पर ध्यान रखिये इसके लिए आपकी अन्तश्चेतना का पूरी तरह से जाग्रत होना अति आवश्यक है जिससे की आपकी आत्मा आपके मंत्र को सुन पाए. इसके उल्ट स्फुट मंत्रो में मंत्र का उच्चारण ध्वनि के साथ किया जाता है ताकि हम अपनी अंतर आत्मा के साथ मंत्र का सामंजस्य बिठा सकें और वो मंत्र हमें सिद्ध हो सके. इसीलिए ये जरूरी है की मंत्र हमेशा सदगुरुदेव से ही प्राप्त करना चाहिए जिससे की उसको विधिपूर्वक सिद्ध करके लाभ लिया जा सके

Happy new Year 2012

नव वर्ष पर आप सभी गुरुभाई और गुरुबहिनो को हार्दिक मंगलकामनायें....

!! श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः !!
जय गुरुदेव!

आइये करे गुरु की खोज.....

जो हम ही में, हमारे हृदय में हैं.....

जिन खोजा तिन पाईया, गहरे पानी पैठ...

आज शायद लोगो के लिए गुरु शब्द का अर्थ सिर्फ एक संत हो गया हैं. मगर गुरु की वास्तविकता तभी ही समझी जा सकती हैं, जब उस गुरु की शिष्यता में आकंठ डूब जाए. सब छोड़ कर गुरु ही याद रहे. मुझे सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी की इस सन्दर्भ में कुछ लाइने याद आती हैं....
जब गुरु गोरखनाथ से पहली बार उसके गुरु ने पूछा कि:
गुरु : "आपका काम क्या हैं?"
गोरखनाथ : "गुरु सेवा"
गुरु : "आपका नाम क्या हैं?"
गोरखनाथ : "शिष्य"

उन्होंने हर वो बात कहीं जो सिर्फ गुरु और शिष्य के रिश्ते पर आधारित होती थी.
मतलब वे गुरु के रंग में ही रंग गए थे, सब कुछ छोड़कर.

यह ही सदगुरुदेव का भी कहना हैं.... : "जो सब कुछ छोड़ सकता हैं, वही ही गुरु को पा सकता हैं."

और जो उसमें डूब जायेगा उसे पता होगा कि गुरु क्या हैं? कैसे हैं? क्या कर रहे हैं?

हकीकत तभी जानी जा सकती हैं जब उनके प्रेम में मीरा बन सकेंगे.

क्यूंकि समंदर की गहराई तो वही ही जान सकता हैं, जो समंदर में डुबकी लगा सकें.
जो गुरु के प्रेम में आकंठ नहीं डूबा वह नहीं जान सकता हैं.

तो सदगुरुदेव हम सभी को श्रेष्ठ बुद्धि दे कि हम सभी उनमें डूबता ही चले जायें.

क्यूंकि यही जिंदगी कि सबसे बड़ी सच्चाई होगी.

नव वर्ष पर आप सभी गुरुभाई और गुरुबहिनो को हार्दिक मंगलकामनायें....

आओ बनाये निखिल्मय, सिद्धाश्रम्मय इस जहाँ को.....Happy new Year 2012

Pupil guru the same way love used to love the way Shiva Markandeya

शिष्य गुरु से उसी प्रकार प्रेम करता है जिस प्रकार मार्कंडेय शिव से प्रेम करते थे | साधना का अर्थ ही है प्रेम ,आपने इष्ट से ,आपने गुरु से और उस प्रेम को व्यक्त करने की क्रिया में काल समय भी बाधक नहीं हो सकता ,ऐसा मार्कंडेय ने सिद्ध करके दिखा दिया |ऐसा ही प्रेम शिष्य का गुरु से हो |

शिष्य और गुरु के बीच में थोड़ी भी दूरी न हो | इतना शिष्य गुरु से एकाकार हो जाए कि कि फिर मुह से गुरु नाम या गुरु मंत्र का उच्चारण करना ही न पड़े | जिस प्रकार राधा के रोम-रोम में हमेशा कृष्ण -कृष्ण उच्चारित होता रहता था ,उसी प्रकार शिष्य के रोम-रोम से गुरु मंत्र उच्चारित होता रहे -सोते ,जागते ,चलते ,फिरते |

शिष्य को स्मरण रहे कि सदगुरुदेव सदा उसकी रक्षा के लिए तत्पर है |कोई क्षण नहीं जब सद्गुरु उसका ख़याल न रखते हो | जिस प्रकार हिरन्यकश्यप के लाख कुचक्रो के बाद भी प्रल्हाद का बाल भी बांका नहीं हुआ ,उसी प्रकार शिष्य के आस्था है तो कोई भी शक्ति उसका अहित नहीं कर सकती

संसार में सबकुछ क्षणभंगुर हैं ,सबकुछ नाशवान है केवल प्रेम ही शाश्वत है जो मरता नहीं जो जलता नहीं जो समाप्त नहीं होता |
जिसने प्रेम नहीं क्या उसका हृदय कमल विकसित हो ही नहीं सकता वह साधना कर ही नहीं सकता क्योंकि प्रेम ही जीवन का आधार है |
पर तुम्हारा प्रेम ,प्रेम नहीं ,वासना है ,क्षुद्रता है ,ओछापन है और फिर प्रेम शरीरगत नहीं आत्मगत होता है|
क्योंकि आत्मगत प्रेम ही प्रेम की पूर्णता ,सर्वोच्चता और श्रेष्ठता दे सकता है और ऐसा प्रेम सिर्फ गुरु से ही हो सकता है |
क्योंकि उसका और तुम्हारा सम्बन्ध शरीरगत नहीं विशुद्ध आत्मगत है |
यही साधना का पहला सोपान है |

गुरु और तुम में यही अंतर है की तुम हर हालत में दुखी होते हो जबकि गुरु को सुख दुःख दोनों ही व्याप्त नहीं होते ,वह दोनों से परे है और तुम्हे भी उस उच्चतम स्थिति पर ले जाकर खड़ा कर सकता है जहा दुःख ,पीडा तुम को प्रभावित कर ही न सके |

आप अपने को धन और वैभव पाकर सुखी मानने लगते है क्योंकि अभी आपने वास्तविक सुख को देखा ही नहीं |इन सुखो के पीछे भागकर आप अंत में दुःख ही पाते है |भोग से दुःख ही पैदा हो सकता है जबकि गुरु तुम्हे उस सुख से परिचित करना चाहता है जी आंतरिक है जो स्थायी है |

तुम सोचते हो की शादी करके सुखी होंगे या धन प्राप्त करके सुखी होंगे |सुख तो उसी क्षण पर संभव है वह धन पर निर्भर नहीं है |वह वास्तविक आनंद तुमने नहीं देखा इसलिए तुम धन को ही सुख मान बैठे हो जबकि उससे केवल दुःख ही प्राप्त होता है |

वास्तविक सुख तुम्हे तभी प्राप्त हो सकता है जब तुम अपने आप को पूर्ण रूप से गुरु में समाहित कर दोगे और वह हो गया तो फिर तुम्हारे जीवन में कोई अभाव रह ही नहीं सकता ,धन तो एक छोटी सी चीज है |पूर्णता तक तुम्हे कोई पहुंचा सकता है तो वह केवल गुरु है |

गुरु के सामने सभी देवी -देवता हाथ बांधे खड़े रहते है वह चाहे तो क्षण मात्र में तुम्हारे सभी कष्टों को दूर कर दे |??तो करता क्यों नहीं ?गुरु तो हर क्षण तैयार है तुममें ही समर्पण की कमी है ,जिस क्षण गुरु को तुमने अपने हृदय में स्थापित कर लिया उस क्षण से दुःख तुम्हारे जीवन में प्रवेश कर ही नहीं सकता |


तुम्हारा गुरुदेव,
नारायण दत्त श्रीमाली

Thursday, December 22, 2011

A Love Song... A Wish... A Prayer..





NIKHIL GURU MANTRA






34 Dedication Adilok visit Loca | समर्पण –34 लोका अधिलोक यात्रा

समर्पण –34 लोका अधिलोक यात्रा –
अब तक किताबों में पड़ा था के इस पृथ्वी के इलावा ब्रह्मांड में और भी लोक है !इंसान बिना देखे कभी यकीन नहीं कर सकता 1996 में मैं जब चंडीगड़ था !पूरा स्म्य साधना में गुजरता था सद्गुरुदेव की विशेष कृपा ही थी उनकी तरफ से बराबर दिशा निर्देश मिल जाते थे !एक दिन उनहो ने एक दिव्य मंत्र दिया और कहा इस मंत्र का जप लाल वस्त्र औड कर करो मैंने निहिचित समय पे मंत्र जप शुरू किया शुरू में शरीर में काफी गर्मी बढ़ गई फिर एक दम से शरीर सुन सा हो गया जैसे समाधि में होता है और पता ही नहीं चला ध्यान कभ ब्रह्मांड को चीरता हुया मेरा शरीर
(सूक्षम शरीर ) एक महल के एक बहुत बड़े दरवाजे के आगे पहुँच गया उस किले नुमा दरवाजे में परवेश करने ही वाला था और व्हा के दो पहरोदारों ने मुझे पकड़ लिया उन के हाथो में दो भाले से थे और वस्त्रो में राजसी लग रहे थे सिर पे लाल रंग अधिकता लिए हुए मुकट से थे जैसे किसी राजा के सैनिक हो और कहा परवेश किए जा रहे हो दोनों ने मुझे पकड़ लिया तभी मैंने सद्गुरु जी को याद किया और सद्गुरु जी उसी वक़्त प्रकट हुए और उन्हे मुझे छोडने को कहा वोह मुझे छोड़ कर एक तरफ हो गए और गुरु जी ने मुझे महल के अंदर परवेश करने का इशारा किया और खुद अधृष्ट हो गए मैंने परवेश किया और देखा बहुत ही भव्य महल था मणियो से प्रकाश निकल कर महल को रोशन कर रहा था और आगे बहुत बड़ा हाल था जिस में एक तरफ बैठने के लिए तख्त से थे और चारो और फूलो के गमले से रखे थे जो अजीब किसम के थे तभी सहमने से कुश लोग आते दिखाई दिये और उनहो ने मेरा स्वागत किया और मुझे एक आसन पे बैठाया और तभी एक राजा जैसा वियाकती आता दिखाई दिया उसने भी मुझे बहुत स्तीकार दिया और वहाँ बहुत सी बाते की और कई विषों पे चर्चा चलती रही और फिर मैंने सहमने बैठे एक ऋषि जैसे वियक्ति से पूछा यह कोण सा लोक है तो उसने बताया तुम इस वक़्त सूर्य लोक की भास्कर नगरी में हो और यह भास्कर नगरी के राजा नेत्र सैन का महल है !और मुझे मुझे यह रहस्य पहली वार अनुभव हुया के गुरु जी इस पृथ्वी लोक के इलावा अन्य लोगो की चिंता भी करते है और अन्य लोगो में भी उनके शिष्य हैं ! जब आँख खुली तो तीन घंटे बीत गए थे !फिर एक दिन नेत्र सैन जी मुझे मिलने आए और काफी चिंतक लग रहे थे !क्यू के निकट भविष्य में सूर्य ग्रहण था जिस का केंद्र भास्कर नगरी था मैंने उन्हे काफी आश्वाश्न दिया सूर्य ग्रहण के वक़्त वहाँ फिर जाना हुया और पहली वार देखा गुरु जी इस ग्रह के इलावा और लोगो में भी साधना शिवर आयोजन करते थे और व्हा के शिवर जहां से बहुत उच कोटी के थे !मुझे सद्गुरु जी की कृपा से वहाँ भाग लेने का अवसर मिला यह बाते भले ही पड़ने में अटपटी लगे लेकिन मैं उस रहस्य से वाकिव हो गया था के मुझे झन भेजने के पीछे सद्गुरु जी का क्या प्रयोजन था उस ग्रह की गरिमा और साधना अनुभव मैंने आज भी सँजो कर रखे है जो साधारण साधक को विस्मिक करने वाले है !मानो तो सभ कुश है नहीं तो कुश भी नहीं सरधा और विश्वश साधक को एक नए रहस्य से जोड़ देते है जिस पे यकीन करना आसान नहीं होता पर सत्य तो सत्य है जिसे कभी झुठलाया नहीं जा सकता !क्र्शम !!


Mein Garbhasth Baalak Ko Chetna Deta Hoon

 Mein Garbhasth Baalak Ko Chetna Deta Hoon:मे गर्वस्थ वालकको चेतना देता हुँ :


Listen to Mein Garbhasth Baalak Ko Chetna Deta Hoon in the original voice of Revered Sadgurudev Dr. Narayan Dutt Shrimali.



1.   Mein Garbhasth Baalak Ko Chetna Deta Hoon  (Part 1):



2.   Mein Garbhasth Baalak Ko Chetna Deta Hoon  (Part 2):


Sunday, December 18, 2011

Hypnosis System | सम्मोहन तंत्र

सम्मोहन तंत्र


जीवन में सफलता पाने की चाह किसे नही होती, पर क्या सफलता इतने आसानी से मिल पति है , शायद नही न. आख़िर क्यूँ?????? सफलता की कीमत क्या है !!! क्या सिर्फ़ धन से,ऊँचे कद से,सुंदर चेहरे से सफलता मिलती है ??? नही ऐसा नही है!!! आत्मबल की , दरिन  इच्छा  शक्ति  की  , और  ये  सब  प्राप्त  होता  है  सम्मोहन  शक्ति  के  द्वारा । यदि  आप  में  सम्मोहन  शक्ति  जाग्रत  है  तो  सफलता  आपसे  दूर  रह  ही  नहीं  सकती ,फिर  चाहे  वो  आपके  ऑफिस  में  आपका  बॉस  हो ,आपका  जीवन  साथी  हो , आपका  प्यार  हो  ,आपका  ग्राहक  हो  ,कोई  नेता  हो  ,अभिनेता  हो  या  फिर  कोई  आम  आदमी  , इस  शक्ति  के  सामने  किसी  की  भी  दाल   नहीं  गलती . आप     अपने  सभी  सदुद्देश्य  इस  शक्ति  के  द्वारा  पूरे  कर  सकते  हैं  .

शायद  आपको  पता  नहीं  होगा  की  रूसो  रास्पुटिन  ने  इसी  शक्ति  के  बल  पर  रूस  पर  शासन  किया  .एक  सामान्य  से  चरवाहे  ने  उस  विशाल  राज्य  को  अपना  गुलाम  ही  बना  लिया . क्या  आपको  ये  लगता  है  की  सिर्फ  सम्मोहित  करने  का  गुण  ही  इस  शक्ति  के  द्वारा  मिल  पता  है  तो  ये  मात्र  आपकी  गलत -फहमी  है  ,क्यूंकि  इस  शक्ति  के  विविध  आयाम  हैं , जैसे  की  आरोग्य , धन  और  पूर्णता  भी  इसी  शक्ति  की  अनुगामी  उप्शाक्तियाँ  हैं . अश्तादास  सिद्धियों  में  से  एक  वशित्व  सिद्धि  का  ही  ये  एक  रूप  है . अपर  शक्ति  का   ये आधार  है . अधिकांश  साधक  जिन्होंने  अप्सरा , यक्षिणी  की  साधना  की  हैं , उन्हें  प्रतायाक्षिकरण  तो  दूर  कोई  अनुभूति  भी  नहीं  होती  क्या  आपने  सोचा  है  की  जो  साधक  सफल  हुए  हैं  उनमे  क्या  विशेषता  है , शायद  आपने  कभी  ध्यान  ही  नहीं  दिया  होगा .

बस  साधना  की  सत्यता  पर  इल्जाम  दाल  कर  और  इन  साधनों  को  कपोल  कल्पित  कह  कर  अपने  कर्त्तव्य  की  आईटीआई  श्री  कर  लेते  हैं , पर  ये  तो  अपनी  कमियों  को  नजर -अंदाज  ही  कर्म  है  . सम्मोहन  की  उच्चावस्था  में  ये  प्रताय्क्षिकरण  की  घटना  तो  सामान्य  बात  हो  जाती  है , फिर  चाहे  वो  अप्सरा  हो , यक्षिणी  हो , लक्ष्मी  हो  या  अन्य  कोई  भी  शक्ति  , सम्मोहन  के  पाश  में  आबद्ध  होकर  सामने  हाथ  बाँध  कर  कड़ी  होती  हैं , सामान्य  मानव  की  तो  बात  ही  छोड़  दीजिये . भले  ही  आपको  ये  बातें  अतिशियोक्ति  पूर्ण  लगे  पर  ये  सत्य  है  , इस  सत्य  को  मैंने  सदगुरुदेव  के  आशीर्वाद  से  मैंने  ग . क्यूंकि  आंतरिक  की मिया  करने  के  बाद  धात्विक  की मिया  तो  सामान्य  बात  ही  रह  जाती  है ।

सम्मोहन तंत्र , सामान्य त्राटक अभ्यास से भिन्न ही है . क्यूंकि सामान्य त्राटक के क्रम को करते हुए सफलता प्राप्त करने के लिए लम्बी अवधि लगती है और सतत अभ्यास भी वाही ताँता का आश्रय लेने पर ये दुर्लभ घटना शीघ्र ही आपके साधक जीवन में घटित होती ही है . हाँ इसके लिए एक व्यवस्थित जीवन चर्या का पालन थोड़े दिन तो करना ही पड़ता है और यही साधक जीवन की मर्यादा भी है .तभी तो आपकी मनोवांछित शक्ति अपने वरद हस्त को आपके शीश पर रख पूर्णता और सफलता का आशीष देते हुए आपको धनवान व गौरव प्रदान करती हैं. ये सूत्र किताबों में लिखे हुए नही हैं ये तो सिद्धाश्रम की दिव्या चेतना से आप्लावित दिव्या मंत्र हैं जो वहां के योगियों के मध्य ही प्रचलित हैं. हम शायद ये बार बार भूल जाते हैं की हम भी उसी दिव्या भूमि ,उसी परम्परा से जुड़े हुए हैं , हम सभी में भी वही का बीज बोया गया है, अब हम उसेसध्नाओं द्वारा अंकुरित न करें तो ये हमारी कमी है.

५० भस्त्रिका का नित्य अभ्यास आपकी जड़ता को समाप्त कर शरीर को चैतन्य करता है.ये क्रिया नित्य होनी ही चाहिए.

साथ ही शरीर सिद्धि मन्त्र का गुरु द्वारा निर्देशित संख्या में जप करना चाहिए .प्रथम दिवस यही क्रियाएँ होती है.

दूसरे दिन सुषुम्ना नाडी के जागरण के लिए आत्म सिद्धि मंत्र का जप किया जाता है. कल वाला मंत्र भी इसके साथ अनिवार्य ही है. पहले प्रथम दिन का मंत्र जप फिर दूसरे दिवस का मंत्र जप. क्यूंकि शुशुमना नाडी के भेदन के बाद ही सम्मोहन शक्ति का प्रस्फुटन आपमें होता है और आपका चेहरा ओज से आभा से भर जाता है. आपमें दिव्या दृष्टि का उद्भव होता है .

तीसरे दिन चक्र जागरण साधना संपन करनी होती है जिसके द्वारा सम्मोहन मात्र आपके चेहरे पर न होकर समस्त शरीर में प्रसारित हो जाता है , तब आपके स्पर्श मात्र से सामने वाला सम्मोहित हो जाता है.इसके पहले का क्रम वाही रहेगा जो पहले दिन का था.

चौथे दिन अन्तर साधना मंत्र का जप किया जाता पहले के क्रम को संयुक्त करके.इसके बाद साधक में इतनी सामर्थ्यता आती ही की वो वांछित शक्ति को अपने सम्मोहन बल में बाँध कर आवाहित कर सके.

पाँचवे दिन स्वसम्मोहन सिद्धि मंत्र का जप अन्य मंत्रों के साथ किया जाता है .ये संपूर्ण क्रिया २४ दिनों की होती है यदि इस विश्व में कोई सबसे कठिन काम है तो वो अपने आपको अपने अनुकूल बनाना और जैसे ही ये क्रिया होती है ,आपमें चुम्कत्व पैदा होता है अन्य सभी लोहे की भांति आपके आकर्षण छेत्र में आ ही जाते हैं और आप अपनी कमियों को आत्म-निर्देश देकर समाप्त कर सकते हैं और अपने गुणों को और ज्यादा शक्तिशाली कर सकते हैं. यदि आगे इन मंत्रों को लगातार किया जाए तो वशित्व सिद्धि की प्राप्ति होती ही है. याद रखिये सम्मोहन का अर्थ ही होता है ख़ुद को ही मोहित करना यानिकी स्वयं की चेतना को आकर्षित कर परम चेतना से मिला देना. यदि हम २४ घंटे चुम्बकीय शक्ति से युक्त रहेंगे तो हमसे मिलने वाला कैसा भी व्यक्ति हो हमारे सद्वाक्यों को कभी नही ताल सकता. और उच्चावस्था में दिव्या शक्तियां भी हमारे प्रभाव क्षेत्र में आबद्ध हो जातियो हैं. फिर हमारे पास यदि किसी का फोटो भी हो या हमारे मश्तिष्क में किसी का बिम्ब भी हो तो उस व्यक्ति या शक्ति को सम्मोहित कर अप्नेअनुकूल किया जा सकता है, या किसी रोगी के कष्टों को दूर किया जा सकता है . यही क्रिया तिब्बत में बोध-संवहन- विधि कहलाती है. ये मंत्र दुलभ जरूर हैं पर अप्राप्य नही. सद्गुरु के चरणों में प्रार्थना कर हम पूर्ण सम्मोहन प्राप्ति दीक्षा पायें और इन मंत्रों को प्राप्त कर असंभव को भी सम्भव कर सकें. जब हम दिव्यता को पा सकते है तो फिर गिद्गिदाकर अपने आत्म-सम्मान को क्यूँ अपने ही पैरों के नीचे कुचलें या औरों को क्यूँ कुचलने दे. तभी तो कहते हैं न की जिद करो और दुनिया बदलो।

Sammohan Tantra

Who do not will to gain success in the life, but is it possible to gain success so easily? Probably no. why so..???? What is the payment for the success!! Could success be gained with money, prosperity, beautiful face? No! Never like that.

You just watch few peoples name like Mahatma Gandhi, Sukrat, Arastu etc. All these people are famous for their fame, success and achievements in whole world. Hence now it has been proved through this that only good faces can not make you achieve success. Dear all, to achieve success, the basic requisition is self determination, the will of achieving, and all these could be gain through sammohan power। If your sammohan power is awaken, then success can not stay far from you anymore, rather it may be boss of your office, your spouse, your love, your customer, any leader, actor may be, or may be a normal human being, before this power no one is able to horn. You can complete all your desires which you are willing to make with this power.

Perhaps many might not be aware that Ruso Rasputin ruled on Roos with the help of this power only. A normal cowboy made the whole kingdom in his hand. It is only your misconception if you think that you can only hypnotize someone through this power, because this power has various steps, like health, wealth and totality are some of the following powers with sammohan. Meanwhile this is only a form of a Vashitva Siddhi which is among 18 siddhis. This is a base of apara shakti. Many sadhak who try to accomplish apsara or yakshini sadhana they do not get apsara or yakshini before them rather they do not even experience anything during sadhana. Have you ever thought that the sadhak, who gained success in that sadhana; how they differ? May be you haven’t ever marked this thing.

Then people blame on authenticity of the sadhanas and be thorugh with their belongings of routine life, but this is to just avoiding of our faults. In the higher stage of this sammohan power, such things are very much normal to accomplish after all it may be yakshini, apsara, lakshmi or any other shakti , they just be with holded hand to you bowing down to your power. Leave the normal beings, they will feel all these things over through heads, with the blessing of our beloved Sadgurudev , I have applied this in my life and achieved success. That’s why I am negotiating the Inner alchemy to you today because after pursuing Inner alchemy, our alchemy is too much easy to do.

Sammohan tantra is different from normal tantra study. Because to achieve success with practice of normal tantra takes a little more time and it requires having continuity in the process but this thing may happen to you in small span of time. Yes. For this, you need to go through a special schedule and this is a limitation of sadhak’s life3.

That’s why your desired power blesses you by placing its hand on your head to achieve success and totality and get you prosperity. These facts are not written in scriptures and these can be obtained by sages of Siddhashram and has remained among them only. We again and again forget that we too are attached to that sacred land because of our Gurudev and he only has placed a seed in our heart for Siddhashram but it is our fault if we don’t make tree out of it.

Daily 50 times bhastrika will vanish your laziness. This process is required to perform daily.

With that, the Shareer sidhhi mantra should be recited as suggested by guru. First day these processes are to be carried out.

On second day Aatm siddhi mantra should be recited to awake the Sushumnaa naadi. It is also require to chant the mantra of yesterday. First process of 1st day and then only move to second day’s process. Because after sushumnaa is awaken, then the sammohan power is also becomes awake in the body and your face will be glazed with aura. The achievement of the divya drastic starts.

On 3rd day , we need to accomplish Chakra jaagaran Mantra through which the sammohan power is spread in whole your body instead of being only on the face. In this condition, by your touching someone , the person get hypnotized. The process includes previous days repetition of all processes.

On 4th day the after doing all 1st 2nd and 3rd days processes, we need to do Antar sadhana mantra ,being accomplished in this, he can make any shakti before him by the generating his power.

On 5th day after repeting processes till 4th day , we should chant Svasammohan siddhi mantra. This whole process is of 24 days. If anything is tuff in this world, it is always to make our self according to the desire of us and when you accomplish this sadhana, you become magnetic and all other people come attractively to you like iron. You can improve your self by guiding you and you can polish your powers. If the process is continued for long, then vashitva siddhi is gained. Remember, sammohan means hypnotizing our self meaning to connect our power into the universal power.

If we remain with the sammohan energy for 24 hours, then who so ever may be meet us, they never refuses what we say। And the shaktis of higher stages becomes accomplished in our power area। After that if we has photograph of anyone or we have image in our mind then with that thing only we can make him or her according to our willing। Or we can treat the patient from miles. In Tibbet this process is called as Bodh- sanvahan- vidhi. The mantra is rare but not been vanished. By praying into the sadgurudev’s feet we should ask for Poorna sammohan prapti diksha and through these mantras we can make things possible which are said to be impossible. Whne we can achieve totality then why should we make our self respect under footed. That’s why it is said that jid karo aur duniya badlo…i.e. change the world by willingness power.

Paramhansa Swami Trijta Aghori ji

Paramhansa Swami Trijta Aghori ji

(सदगुरुदेव जी से जुड़े उनके कुछ जाने - अनजाने प्रसंग )
पथपर आगे बड़ते हुए सदगुरुदेव जी ने पीछे मुड कर देखा तो वे अश्रुपूरित नेत्रों से उन्हें अभी भी वही पर खड़े हुए एकटक देख रहे थे,अभी कुछ देर पहले ही अपने जीवन की सर्वोपरि ,अलभ्य बस्तु रति राज गुटिका सदगुरुदेव जी को देते हुए बे कह रहे थे की नारायण आप ने मुझ जैसे चट्टान ह्रदय को भी ममता सिखा ही दी , अब मेरा भी कोई भाई हैं इस जगत में , .
सदगुरुदेव जी के नेत्रों में भी उन्हें याद करते हुए अश्रु छलक उठे की सही अर्थो में वह मेरे अग्रज कि तरह उसने मेरा पथ प्रदर्शक बना इस तंत्र क्षेत्र में , लगातार २५ दिनों तक वे सदगुरुदेव जी को निद्रा स्तंभन करके ,यक्षि णी साधना , पूर्ण काया कल्प साधना ,ब्रम्हांड निर्माण तक साधना , यक्षिणी चेटक, ब्रम्हांड चेटक , रूप परिवर्तन चेटक जैसे उच्च कोटि के अनगिनत दुर्लभ साधनाए , अद्रश्य गमन साधना ,प्रेत साधना से लेकर, वार्ताली स्तभ्न साधना ,घोर शमशान साधना से लेकर अघोर पथ की दुर्लभ आगे साधना भी उन्हें लगातार सिखा रहे हैं , और आज अब सदगुरुदेव की आगे जाने की वेला आई तो उसी समय एक बकरे को एक हाँथ से उठा कर सैकड़ो फीट उछल दिया , फिर उसी अज की गर्दन एक झटके से तोड़ कर उसका पूरा खून पी रहे हैं,
सदगुरुदेव व्यथित हो कर बोल उठे , इतनी निर्दयता क्यों... क्या बिगाड़ा था उसने .
वे मुस्कुरा के बोले , बोल नारायण कहे तो इसे अभी जिन्दा कर दूं,
कैसे ये संभव हैं ..
क्यों नहीं महाकाल रौद्र भैरव के लिए क्या असंभव हैं ..
वे आसनस्थ होकर मत्रजाप में लग गए , मात्र कुछ ही क्षणों में पूर्ण तयः मृत प्राय बकरा जीवित हो कर चल पड़ा ,
ये कैसे संभव हुआ
शुक्रो पासित मृत संजीवनी विद्या से ,
तो मुझे अभी तक सिखाया क्यों नहीं .
सारे गुर बिल्ली से सिखने के बाद शेर ने बिल्ली पर ही हमला कर दिया , बिल्ली पेड़ पर चढ़ गयी , शेर ने कहा की ये तो मुझे नहीं सिखाया था , बिल्ली ने कहा यही सीखा देती तो आज जान कैसे बच पाती इसलिए तो ये तुम्हे अभी तक नहीं बताया था.
सदगुरुदेव जी बोले मेरी मौसी मुझे भी अब तो सिखा दो .
(सदगुरुदेव मन ही मन उस करुणा और स्नेह से भींग गए समझ गए कि उन्हें कुछ दिन ओर अपने साथ रोकने के लिए ये खेल रचा गया था उनके द्वारा )
कौन हैं ये जिन्हें सदगुरुदेव इतना चाहते रहे हैं ?

ये हैं ....
विश्व बंदनीय, अप्रितम , साक्षात सदेह तंत्राव्तार , अदिव्तीय योगियो में भी श्रेष्ठ , पुराणिक युग कालीन सर्वथा अलभ्य मृत संजीवनी विद्या के एक मात्र साधक , ऐसे अलौकिक व्यक्तिव धारी परमहंस स्वामी त्रिजटा अघोरी जीके बारे में तो तंत्र जगत ही नहीं साधना जगत का हर व्यक्ति चाहे वह आज इस क्षेत्र में आया हो या हज़ार साल का ही क्यों न हो उनके दर्शन की कामना तो मन में हमेशा से लिए हुए ही रहता हैं. एक ऐसा व्यक्तिव जिन्होंने अंत्यंत कठिन , अभावग्रस्त से निकल कर वो उचाईयां प्राप्त की हैं जिसके आगे पूरा विश्व भी नत मस्तक हैं ही . कहते हैं कि तंत्र क्षेत्र में कठोर से कठोर उच्च , और अगेय साधना फिर चाहे वह शमशान हो या अघोर पथ कि इनका सामना पूरे विश्व में कोई नहीं कर सकता .
उच्च ललाट पर सुशोभित लाल सिंदूर का तिलक ,कमर के नीचे तक झूलती लम्बी लम्बी तप कि गरिमा से युक्त तीन जटाये के कारण ये साधक / साधना जगत में त्रि जटा के नाम से विख्यात हैं .भगवान् काल भैरव के अदिव्तीय साधक ओर मृत संजीवनी विद्या के एक मात्र साधक जो आज भी सदेह ,सिद्धाश्रम के ९ सर्वोच्च परम योगियों के मध्य में से एक आज भी उत्तरांचल कि घनघोर दुर्गम पर्वत श्रंखला भैरव पहाड़ी में स्थित महाकाल रौद्र भैरव के मदिर के पास में गुप्त रूप से निवास रत हैं .
पूज्य सदगुरुदेव जी कहते थे कि केबल मात्र तंत्र के बल पर सिद्धाश्रम पहुँचने वाला ये एक मात्र व्यक्तिव हैं . साधना जगत में उनकी उच्र्य बताना मानो सूर्य को दीपक दिखाना हैं ,एक ही आसन पर २० से २५ दिनों तक स्थिर एकाग्र रूप से बैठकर ये साधना पूरी करके ही उठते हैं . इनका भौतिक कद लगभग सवा सात फीट का हैं अत्यंत बलिष्ठ ,सौष्ठव युक्त शरीर के साथ घन के सामान घनघोर ,ह्रदय को कम्पायमान कर देने वाली आवाज के स्वामी हैं . कोई भी साधक ऐसा नहीं रहा जो इनका साक्षात् महाकाल रूपी रूप देख कर सर्व प्रथम दर्शन में स्थिर रह पाया हो . पर भौतिक शरीर कि महत्ता के सामान ही ह्रदय से उतने ही प्रेम मय ,प्रेम परिपूर्ण हैं . कुछ काल उपरान्त सदगुरुदेव जी के निखिलेश्वरानद स्वरुप को जानने के बाद सदगुरुदेव जी की लीला से आश्चर्य चकित हो कर से उन्होंने भी दीक्षा ली ओर उनसे तंत्र क्षेत्र कि अगम्य साधनाए प्राप्त की .
एक बार अपने अग्रज गुरु भाइयों से सुनने में आया था कि एक पूर्ण बड़ी पुस्तक सदगुरुदेव जी ने इनके जीवन पर लिख कर छपने को देने जा रहे थे , तभी रात्रि काल मैं प्रेस में ही सदेह से आकर इन्होने वह किताब ही टुकड़े टुकड़े कर दी ,सदगुरुदेव जी से कह उठे “जब ये नासमझ , लोग अपनी स्वार्थपरता को शिष्य रूप की आड़ मैं छुपा कर आपसे ही छल करते रहते हैं और लेश मात्र भी शर्म सार नहीं हैं अपने कृत्यों पर और अपनी मक्कारी , चापलूसी को शिष्यता का नाम देते रहते हैं तब ये न जाने मेरे बारे में क्या क्या अनर्गल प्रलाप कर लोगों को मुर्ख बना कर अपना स्वार्थ सिद्ध करेंगे इसलिए ये किताब को ही में नष्ट कर दे रहा हूँ. , सदगुरुदेव जी ने कहा कि . आखिर वे अघोरी हैं अभी गुस्से में हैं
तंत्र क्षेत्र के साधक कोकैसा होना चाहिए , जो निश्चय ता , साहस ,एक आसन निष्ठता , और अपने इष्ट के सामान तेज धारण करे हो ये तो इनके व्यक्तिव को देख करही सिखा जा सकता हैं.

एक साधक गुरु भाई प्रणम्य हो कर जिज्ञासा रख रहे हैं उनसे कह रहे हैं की क्या हैं आखिर इस गुरु मन्त्र में , ऐसा क्या विशेष हैं जो आप इसे सर्वश्रेठ मंत्र कहते हैं ब्रह्माण्ड का ,ये तो हर गुरु की तरह सिर्फ गुरु मंत्र ही तो हैं ..
महायोगी कह रहे हैं वत्स धन मांग लो आयु मांग लो सुदर स्त्रियाँ मांग लो पर ये न पूछो ,...

आप सेज्यादा ब्रह्माण्ड में इसके बारे में कौन बता सकता हैं देना हैं तो ये दीजिये या फिर मना कर दे.

hain
वे कह रहे हैं कभी सोचा हैं की सदगुरुदेव का नाम अखिल क्यों नहीं रखा गया , क्यों निखिल कहते हैं उन्हें ........." वे बोलते जा रहे हैं पूरी प्रकति मौन हो कर एक एक अमृत बूँद पी रही हैं फिर जो उन्होंने प्रत्येक अक्षर की व्याख्या करी मानो ब्रह्माड का सारा ज्ञान हि नहि बल्कि स्वयं ब्रम्हांड ही उतर आया हो उस समय सुनने के लिए ,sabhi maun

सारा विश्व की ज्ञान धरोहर ही नहीं विश्व के अन्दर क्या, परे क्या , सब हैं समाया हुए इस महा मंत्र में , एक एक अक्षर की व्याख्या करने में साक्षात् ब्रम्हा भी असमर्थ हैं ...वे भाव बिहोर होकर बोलते जा रहे हैं .... तुम तो अपना गुरु मन्त्र जानते ही हो उसका पहला अक्षर हैं ...

प् का ये अर्थ हैं ....
र का ये अर्थ हैं.......
म का ये अर्थ हैं, ....
.......
......
क्या क्या नहीं समाया हैं सारी अखिल ही नहीं निखिल सम्पदा हैं सिद्धियाँ हैं उच्चता हैं श्रेष्ठता हैं एक एक अक्षर में ... और तुम लोग हो की यहाँ वहां भटकते रहते हो ....

किंचित क्रोध रोष में बोले .......अरे ये गली बाज़ार के भिखारी जादूगरी दिखा कर अपना अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं, तुम लोग समझते क्यों नहीं, ये धोखे बाज़ तुम्हे क्या दे देंगे,.... क्या दे सकते हैं ये...... ये गुरु रूप की आड़ में बैठे ठग तो खुद भिखारी हैं .आखिर कब समझोगे तुम उन्हें (सदगुरुदेव) ... पर तुम लोग समझ भी कैसे सकते हो ..उन्होंने ही तो ये माया फेलाई हैं भला नारायण हो माया नहो कैसे न हो ये .. कुछ ही पहचान पाए हैं उन्हें , शेष के आंखोंमें आसूं ही रहेगे जब वे यहाँ से सिद्धाश्रम चल देंगे,,,.....और तब तुम जब समझोगे ...... तब तक सिर्फ आंसूं ही होंगे ..... तुम्हारे पास... वे नहीं ......

सदगुरुदेव भगवान् , अब आप ही बताये की मैं कैसे गुरु बचन को पूर्ण करूँ ,आपने जो अति प्राचीन तंत्र ग्रन्थ आसुरी कल्प खोजने की आज्ञा दी थी , मैं हार गया अब आप ही मार्ग बताये ,सदगुरुदेव बोले तुम त्रिजटा अघोरी जी के पास जाओ उनसे मिलो मैंने उन्हें संकेत दे दिया हैं ,( गुरु भाई ,सदगुरुदेव जी से पूछ रहे थे )
लगतार कठिन पहाड़ियों को पार करते हुए मानसरोवर के पास में हिरण्याक्ष पहाड़ी की ऊपर पहुँच के देखता हूँ तो सामने त्रिजटा अघोरी जी पर्वतासन पर विराजमान हैं ,जैसे हि मैने उनके चरण स्पर्श कर परिचय दिया ,उन्होंने ह्रदय से आशीर्वाद प्रदान किया . सदगुरुदेव की कुशलता के बारेमें पूछा,. पिछले कई महीनो से समाज में उनके विरुद्ध चलाये जा रहे झूंठे प्रचार ,अपमान जनित बाते , ओर पत्र पत्रिकाओं में अनर्गल प्रलाप केबारेमें बताया ,
मेरे द्वारा बताने पर , मानो साक्षात् महाकाल ही उनके रूप में उतर आये हो.

अब में सिद्धाश्रम की भी परवाह नहीं करूँगा , इस पात कियों को तो दंड देना हो होगा . ये दुष्ट ऐसे नहीं मानेगे , वे वहां आग में साक्षात् तिल तिल कर जल रहे हैं ओर में यहाँ बैठा उन्हें देखता रहूँ , ये नहीं हो सकता , अब बहुत हो गया ." घनघोर ध्वनि चारों और गुंजायमान हो रही थी ."
किसी तरह अपने को नियत्रित कर अश्रु प्रवाह रोकते हुए बोले " केबल और केबल उनमें ही ये सामर्थ्य हैं जो इतना विष पिने के बाद भी अपना तिल तिल खून जला कर भी समाज को अमृत दे रहे हैं ,हम सभी उनकी आज्ञा से बंधे हुए उन्हें विवशता से मुस्कराहट लिए हुए ,अपने शिष्यों को तैयार करने की अनथक श्रम के बीच , अग्नि शोलो के बीच जलता हुए देख रहे हैं "
तुम लोगों के कितना सौभाग्य हैं पर तुम लोग तो उसे जान भी नहीं पा रहे हो..... .हम सभी उनकी प्रतीक्षा में हैं ,जिस दिन हमारे आराध्य हमेशा के लिए हमारे साथ होंगे .
तुम लोग उनके मन ह्रदय की वेदना कम से कम अगर वे नहीं कहते हैं तो उनकी आँखों में देख कर ही समझ सको, समझ सको की आखिर उन्हें किस चीज की आवश्यकता हैं तुम लोगों से .. सिर्फ तुम लोगों से स्नेह के कारण ही तो वे वहां हैं....... पर तुम लोग तो सिर्फ अपना ही स्वार्थ ...........

*********************************************** (some memorable moment with ref to sadgurudevji )
Sadgurudev ji turn his face to see him, still with tearful eyes he was standing there watching Sadgurudev,but the need of time and responsibility stopped him .just a few minite before he has given the most precious things in the world “Rati Raaj Gutika”, person belongs to sadhana knew already about that , he himself earned through untold hard work and obedience to his gurus , but with love he gave to Sadgurudev ji. .he is saying that” Narayan , you teach what is mamta ( sneh /love ) to a stone hearted person like me.. now I can say I have a brother like you ..”
Even sadggurudev ji recalling that incident, have tear in his eye and said “ in true sense he became my elder in the tantric sadhan field andlead to the path unknown to many…” nearly 25days of his first meeting with Sadgurudev ji, he through “Nidra Stambhann Prayog” stopped Sadgurudevji’s sleep and continuously taught sadhana like .yakshini sadhana, purn kaya kalp sadhana, bramhaand creation sadhana, yakshni chetak, bramhaand chetak ,rup parivartan chetak like such a high and rare sadhana, Adrashy gaman sadhana , from prêt sadhana to vartali stambhann sadhana , from ghor shamshan sadhan to durlabh aghor sadhana, he was teaching continuously, neither he take rest nor giving any rest to Sadgurudev ji, now a perfact combination formed.
And today when Sadgurudev ji has to go, the time come, he bring a he-goat and through that in air with one hand, and catch , break it s neck in two part and start sucking blood coming out of that.
Sadgurudev ji very painfully told that why such a cruelty ,what wrong he does to you ,so that you have taken that his life in such away..
He smiling spoke.”speak to me Narayan if you say than I will again bring back that in”
How that is possible?
There is nothing is impossible for bhgvaan Mahakaal Roudra Bhairav?
Than he sitting on the aasan and starts mantra jap within few second that he goat again is in life taking breathing again .as if nothing happened to him before.
How that was possible ?
Through” Sukropasit Mrit-Sanjivani vidya.”
Why did not you teach me that yet?
After getting training of all art from cat ,once lion attacked on the cat, the cat jumped over the tree. Very shamefully lion asked to the cat why did not teach him that art, cat replied- if I did that so than i could not be alive this moment.
Sadgurudev ji replied with smile- my mausi now teach me that too.
(Sadgurudev ji understood the feeling behind the incident and the love and sneh,/ compassion of him , that he try to stop him anyway…)
Who is this persoanalty, whom even Sadgurudev ji loved so much..
He is..
Respected from whole world , unique , human form of Tantra , and such a unimaginable personality having , Paramhansa swami Trijata Aghori ji , everybody whether today he is treaded on this path or thousand years old one of, not only tantra world but in sadhana field also , all are having ever desire to see him, once in their life span whether that may be of a few second. one such a personality who start from very difficult struggle full child hood to reach such a unparallel, unmatchable height that whole world bow down to his sadhana level height and achievement.
Having large red colored sindur on his divine great forehead, and jataye (matted hair) having full of divine energy, which are so long that they are touching his legs because of .theses tree jata of him, he is known as tri jata ji, greatest sadhak of bhagvaan kaal bhairav and only one in the whole world who are blessed with sanjivinai vidya (a puranik era’s vidya through that life can be induce to any dead) and still in his mortal body , and one amongst in nine supreme yogi of siddhashram , still living in deep dense forest surrounding hills in uttranchal in India.
Sadgurudev used to tell him, he is the first person, who only through his achievement in tantra’s field so high that he could reach the holiest place in the whole universe i.e. Siddhashram .to write about his greatness in sadhana field like showing a earthen lamp to fully bright lighted sun in day time. sitting 20 to 25 days straight on a aasan without any moment for to complete in any sadhana, is just a play for him. His physical height is as about more than seven feet. very forceful , highly well built body and blessed with voice sound like cloud sound in rainy season. no sadhak ever can stand on his feet ,on seeing him first such a personality like Bhagvaan Mahakaal rup. But he also having such large heart , full value of human value and full of so much love that words can not describe about his softness, such a great person he is.. after a time when he knew about Sadgurudev ji’s Nikhileshwaranand form, he amazed on sadgurudev ji’s lila and also taken Diksha from sadgurudevji and have got some very rear gems of sadhana of tantra..
It has been listen from our elder guru brother that once Sadgurudev ji wrote a large size book about him , and that has been to press for printing, in the same night he physically came and tear down the book in pieces, and told to Sadgurudev ji “ thses ignorant people, through taking refuse of shishyata , hides their selfishness and does continuously deception to you and not having a single percent of shame of their wrong-doing and gave them a name of shishyata ,than they, I know not what will do useless/baseless things about me and make fools other, to fulfill their selfishness. that is why I destroyed that book.
Sadgurudev later replied he is aghori and he is in anger,
How should be a sadhak of tantric, can be fully learnt /understand by watching him his unshakable will, fearlessness ,perfectly motion less sitting and having the same radiance of as of his isht deity.
One sadhak guru brother , after giving proper respect ,asking him ..what is in, so special about in Guru mantra, that’s why you says that , is supreme most mantra of the universe ,this is type of mantra alike any guru’s have. after all this is a guru mantra.!!!
He replied, my son ..ask me for immense wealth, beautiful woman , and long life ,I can give but not ask about this secret ..
Who other than You ,in the universe can describe about that, if want to give me ,please give that or simple say no to me.
He start saying..’have you ever thought/noticed why Sadgurudev ji ‘sname is Nikhil not akhil..since he….” He is absorbs in his though and words start flowing from his divinity. Nature stand still to listen and start drinking Amrit bond coming out . everywhere silence absorbs… than he starts to describe each and every words of guru mantra in details , like knowledge of whole universe ‘s not but universe it self stand there to listen that divinity.
“Not only all the divine knowledge /gyan but what is inside or out side of whole universe is inside in that, everything’s is in that guru mantra. Even Bramha ji is not able to describe that .. you already know what is the gurumantra and take its first letter is ..
“pa” stands for and carring the meaning …,
“ra” stand for and carring the meaning ….,
“ma” stands for and carring the meaning …..,like that…
what not included in that , not only akhil but Nikhil wealth , highness, greatness uniqueness are included in that and you people living that wondering hear and there aimlessly…”.
He spoke with little anger …theses bagger sitting in the market showing magical skill fulfilling their selfish ness, why did you not people understand that, theses cheater/thug what they will give to you…... , When did you not understand about Sadgurudev….. but how can you people understand him (Sadgurudev)…… he spread his maya ,where narayan is, there his maya….. only a few can recognize his original form …remaining have tears in their eyes when he will finally move to siddhashram….and thaneven if you understand him …. Only than tears will be with you… he is not…
Sadgurudev Bhagvaan- “now tell me how can I obey guru agya to search old tantrak granth like Aasuri kalp, I am help less could not that anywhere, advice me where can I search that..sadgurudev ji replied that . now go and meet trijta I have already indicated about you. (one guru bhai asking to Sadgurudev)
“After crossing to continue high mountain I reach mount hiranyaksh, on reaching its top where temple of mahakaal Raudra Bhairav is situated , found that trijata ji sitting on a big rock ,I touched his divine feet and provide mine aim and introduction that why I am here. ,he blessed me. And ask about Sadgurudev ji. L informed him about so many false allegation, propaganda and false baseless remarks on him either in print media and in others way too. Happening to him from last so many months.
After listing my word , it seems like mahakaal appeared in his form.
“I do not bother about siddhshram , theses culprits has to be punished , theses can not be easily come on the way , he is burning there ,in that fire in part by part slowly slowly and what I am doing here ,just to see him helplessly , this is enough , I cannot wait any more. “His voice sounded very high all round.
Anyhow he controlled himself and said “he and only he has the ability to withstand in such a huge fire with smile and providing Amrit to society , and we all are here watching him , nothing can be done from our side since this is his agya. watching him working day and night with such a pain and hard work with smile just to make their shishy be able enough, “
How fortunate you all are ,but not understanding/recognizing that… we all are waiting him ,the day when our isht will be with us.
You people atleast understand the pain lies in his heart , even if he not tells you, you all have to understand the pain and feeling for you in his eyes. To understand that what he wants from you all …..
only for his love toward s you all , is cause for him to stay there.. but you all just looking only your selffiness………..

Friday, December 16, 2011

Ashta Ykshini Silence | अष्ट यक्षिणी साधना

जीवन में रस आवश्यक है
जीवन में सौन्दर्य आवश्यक ह
जीवन में आहलाद आवश्यक है
जीवन में सुरक्षा आवश्यक है

ऐसे श्रेष्ठ जीवन के लिए संपन्न करें

अष्ट यक्षिणी साधना

बहुत से लोग यक्षिणी का नाम सुनते ही डर जाते हैं कि ये बहुत भयानक होती हैं, किसी चुडैल कि तरह, किसी प्रेतानी कि तरह, मगर ये सब मन के वहम हैं। यक्षिणी साधक के समक्ष एक बहुत ही सौम्य और सुन्दर स्त्री के रूप में प्रस्तुत होती है। देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर स्वयं भी यक्ष जाती के ही हैं। यक्षिणी साधना का साधना के क्षेत्र में एक निश्चित अर्थ है। यक्षिणी प्रेमिका मात्र ही होती है, भोग्या नहीं, और यूं भी कोई स्त्री भोग कि भावभूमि तो हो ही नहीं सकती, वह तो सही अर्थों में सौन्दर्य बोध, प्रेम को जाग्रत करने कि भावभूमि होती है। यद्यपि मन का प्रस्फुटन भी दैहिक सौन्दर्य से होता है किन्तु आगे चलकर वह भी भावनात्मक रूप में परिवर्तित होता है या हो जाना चाहिए और भावना का सबसे श्रेष्ठ प्रस्फुटन तो स्त्री के रूप में सहगामिनी बना कर एक लौकिक स्त्री के सन्दर्भ में सत्य है तो क्यों नहीं यक्षिणी के संदर्भ में सत्य होगी? वह तो प्रायः कई अर्थों में एक सामान्य स्त्री से श्रेष्ठ स्त्री होती है।
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तंत्र विज्ञान के रहस्य को यदि साधक पूर्ण रूप से आत्मसात कर लेता है, तो फिर उसके सामाजिक या भौतिक समस्या या बाधा जैसी कोई वस्तु स्थिर नहीं रह पाती। तंत्र विज्ञान का आधार ही है, कि पूर्ण रूप से अपने साधक के जीवन से सम्बन्धित बाधाओं को समाप्त कर एकाग्रता पूर्वक उसे तंत्र के क्षेत्र में बढ़ने के लिए अग्रसर करे।

साधक सरलतापूर्वक तंत्र कि व्याख्या को समझ सके, इस हेतु तंत्र में अनेक ग्रंथ प्राप्त होते हैं, जिनमे अत्यन्त गुह्य और दुर्लभ साधानाएं वर्णित है। साधक यदि गुरु कृपा प्राप्त कर किसी एक तंत्र का भी पूर्ण रूप से अध्ययन कर लेता है, तो उसके लिए पहाड़ जैसी समस्या से भी टकराना अत्यन्त लघु क्रिया जैसा प्रतीत होने लगता है।

साधक में यदि गुरु के प्रति विश्वास न हो, यदि उसमे जोश न हो, उत्साह न हो, तो फिर वह साधनाओं में सफलता नहीं प्राप्त कर सकता। साधक तो समस्त सांसारिक क्रियायें करता हुआ भी निर्लिप्त भाव से अपने इष्ट चिन्तन में प्रवृत्त रहता है।

ऐसे ही साधकों के लिए 'उड़ामरेश्वर तंत्र' मे एक अत्यन्त उच्चकोटि कि साधना वर्णित है, जिसे संपन्न करके वह अपनी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण कर सकता है तथा अपने जीवन में पूर्ण भौतिक सुख-सम्पदा का पूर्ण आनन्द प्राप्त कर सकता है।

'अष्ट यक्षिणी साधना' के नाम से वर्णित यह साधना प्रमुख रूप से यक्ष की श्रेष्ठ रमणियों, जो साधक के जीवन में सम्पूर्णता का उदबोध कराती हैं,

TEEVRA VASHIKARAN SIDDH KLEEM SADHNA

TEEVRA VASHIKARAN SIDDH KLEEM SADHNA

जब हम संगीत का अभ्यास प्रारंभ करते हैं तो उसकी शुरुआत ही सप्तको से मतलब स,रे,ग,......नी से होती है, है ना. भला क्यूँ, क्यूंकि बगैर इन स्वरों को समझे आप संगीत या गायन में निपुणता पा ही नहीं सकते. सम्पूर्ण संगीत का आधार यही ७ सप्तक हैं. ठीक इसी प्रकार जब हम साधनाओं का प्रारंभ करते हैं तो उसकी सिद्धि का मूल ही होता है मन्त्रों का अर्थ समझना. इसका अर्थ ये कदापि नहीं है की हम भावार्थ को ही जपने लग जाये. मन्त्र तो जिस भाषा में हो उसी भाषा में उनका जप करना चाहिए परन्तु यथा संभव उसमे प्रयुक्त बीजों के अर्थ हमें ज्ञात होना चाहिए.

तभी तो हम समझ पाएंगे की कौन सा शब्द या बीजमन्त्र उस मन्त्र विशेष को उर्जा और गति प्रदान कर रहा है. जैसे ‘सा’ को समझे बगैर आप ‘रे’ को नहीं समझ सकते, ठीक उसी प्रकार प्रत्येक वर्ण की अपनी शक्ति होती है और होता है उसका अपना ध्यान, विनियोग, आकृति और मंत्र भी, ये लेख इस विषय पर केंद्रित नहीं है क्यूंकि ये सब गूढता सूर्य विज्ञानं या गोपनीय आगम तंत्र और रस सिद्धि के लिए होती है पर फिर भी बात वशीकरण और लक्ष्मी साधना की है तो मेरा दायित्व बनता है की मैं उसकी पृष्ठभूमि से आपको अवगत करा दूँ.

वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर का उच्चारण करने पर शरीर पर एक विशेष प्रभाव पडता है, जैसे ‘र’ वर्ण पर अनुस्वार अर्थात बिंदी लगा कर यदि १००० बार ‘रं’ बीज का उच्चारण किया जाये तो शरीर की उष्णता १ डिग्री तक बढ़ जाती है.

'ऐं' बीज का उच्चारण मष्तिष्क को कुशाग्र करता है.
‘खं’ बीज का जप लीवर की समस्याओं को दूर कर देता है, इस प्रकार प्रत्येक बीज का अपना विशेष प्रभाव होता है, जिसके बारे में आगे कभी विस्तार से चर्चा करेंगे.ठीक इसी प्रकार ‘क्लीं’ बीज का अपना एक व्यापक प्रभाव है,ये काम बीज है या ये कहूँ की काम राज बीज है जो की सभी नकारात्मक शक्तियों या विषों का विनाश कर इन्द्र के सामान वैभव देता हुआ प्रबल आकर्षण प्रदान करता है. यदि व्यक्ति इस साधना को किसी भी अन्य लक्ष्मी या आकर्षण, मोहन, वशीकरण साधना के पहले संपन्न कर लेता है तो कठिन से कठिन लक्ष्मी और वशीकरण साधनाएं सहज ही उसे सिद्ध हो जाती हैं.

क्यूंकि ये प्रबल आकर्षण बीज है इसलिए इसके प्रभाव से लक्ष्मी भी बाध्य हो जाती हैं साधक का वरण करने के लिए.मैं एक और बात इस बीजमंत्र के बारे में बता दूँ की तंत्र मार्ग में इस बीज से सम्बंधित ऐसी भी विधियाँ है की यदि व्यक्ति मात्र इस बीज के प्रारंभ में किसी अक्षर विशेष का योग कर इस मन्त्र को यदि ५ मिनट भी जप कर किसी को देख या स्पर्श कर ले तो जिस पर भी दृष्टि या स्पर्श किया हो वो या वह के सभी उपस्थित व्यक्ति अत्यधिक उत्तेजित हो जाते हैं. पर वो एक अलग तरीका है हमें तो तीव्र परन्तु सौम्य प्रयोग चाहिए हाँ ये अलग बात है की उसके लिए भी नीचे वर्णित विधि का ही प्रयोग पहले सिद्धि के लिए किया जाता है.मुझे याद है की सदगुरुदेव ने सन १९९० के आस पास पत्रिका में ‘क्लीं’ बीज पर आधारित प्रयोग दिए थे जिनके बहुत सकारात्मक परिणाम आये हैं. एक महत्वपूर्ण बात ये भी बता दूँ की वशीकरण साधनाओ को संपन्न करने वाले साधकों को त्राटक का अभ्यास भी करना चाहिए. ये त्राटक उपरोक्त काम बीज पर किया जा सकता है या गुरुधाम से विशेष सम्मोहन वशीकरण यन्त्र प्राप्त करके भी किया जा सकता है.

इस मंत्र की सिद्धि के लिए सफ़ेद कागज या भोजपत्र पर त्रिगंध से बने हुए मैथुन चक्र के मध्य में कम बीज मन्त्र को कुमकुम से बना लेना चाहिए.तत्पश्चात कुमकुम , रक्त पुष्प, नैवेद्य, रक्त वर्णीय बत्ती से युक्त घृत का दीप जला हुआ हो और गुलाब, मोगरा, चमेली आदि की महक से युक्त धूपबत्ती का प्रयोग साधना काल में करना चाहिए.रात्री या सुबह का समय इसके लिए उपयुक्त है, पश्चिम या दक्षिण दिशा का प्रयोग किया जा सकता है, लाल वस्त्र व आसन का प्रयोग करना चाहिए.गुरु पूजन और यन्त्र पूजन के पश्चात उस यंत्र का ध्यान अपने भृकुटी मध्य अर्थात त्रिकूट पर करना चाहिए और ध्यान में भी इस मैथुन चक्र के मध्य निर्मित कामबीज लाल ही होना चाहिए.

ये क्रिया दुष्कर प्रतीत होती है लेकिन जब आप ये क्रिया जो क्रम यहाँ देय गया है उसी अनुसार यदि आप करते हैं तो जरा भी समस्या नहीं आएगी . सिद्धासन या सुखासन का प्रयोग करना चाहिए और अन्तः त्राटक (जो की निश्चय ही संभव हो जायेगा) का प्रयोग करके १ घंटे तक ११ दिन तक जप करे माला मूंगे की हो जप की गिनती नहीं बल्कि समय को पूरा करे. धीरे धीरे ये मंत्र उद्दीप और तेज युक्त,प्रकाशित होकर आपके ध्यान में आने लग जायेगा जो की आपकी सफलता का प्रमाण है. ये प्रयोग कितना महत्वपूर्ण है ये तो आप तभी समझ पाएंगे जब बगैर इस प्रयोग को करे किसी भी अन्य वशीकरण या लक्ष्मी साधना को संपन्न करे और फिर उसी प्रयोग को इस कामबीज की साधना के बाद करे. प्रभाव देख कर आप खुद दांतों तले अंगुली दबा लेंगे तो फिर देर किस बात की, खुद परख कर देखिये ना.


TEEVRA VASHIKARAN SIDDH KLEEM SADHNA

When we begin to learn music we start with basic notes which are SA, RE, GA….NI, because without these notes we cannot learn it. These seven notes are the basic of music. Like music when we start SADHNA our first duty is to learn the meanings of MANTRAS. But this does not mean that we start enchanting (japna ya jaap karna) the meanings.

MANTRA should enchant in the language in which they are written but we should know word to word meaning. It helps us to learn that which Word or BEEJ- Mantra is giving power and energy to that basic mantra. As you cannot understand music note RE until you don’t understand SA just like that each VARN has its power and its own DHYAAN, VINIYOG, AAKRITI and MANTRA also. This detail is not about this topic because such deep knowledge is important for SURYA VIGYAAN, GOPNIYE AAGAM TANTRA and RAS SIDDHI but as matter is about VASHIKARAN and LAKSHMI SAADHNAA so it’s my duty to give basic information about it.

When we pronounce any word from VARANMALA than it release special effect on our body for example if “R” word is spoken out with anuswaar “means “BINDI” for thousand times as RAM( रं ) it increase body’s warmness( उषणता) up to one degree.

Pronunciation of Aim (ऐं) sound sharpens the mind and KHAM (खं) sound controls lever problems. So every word has its special effect about which we will discuss some other day. Just as KLEEM BEEJ has its global effect. This is KAAM BEEJ or we can say KAAM RAAJ BEEJ which makes end every type of negative powers and gives most powerful attractiveness (aakershan) and luxuries (vaibhav) as INDRA DEV. If a person completes this sadhnaa before any type of LAKSHMI or AAKERSHAN, MOHAN, WASHIKARAN sadhnaa then he/she can sidh toughest LAKSHMI or WASHIKARAN sadhnaa easily. Because it is powerful AAKERSHAN SADHNAA so it compels GODDESS LAKSHMI to bless the saadhak with her blessings.

In tantra one more thing about this BEEJ MANTRA is that at the starting of this mantra if a person gets sidh or yog of an aksher vishesh and then enchant this mantra for five minutes. After this to which he just look or touch will increase sexual excitement (उत्तेजित) in them. This thing can happen more than one person. But that is other system here we need a soft but fast idea. This is different matter that below given system can be used for this sadhnaa also. I remember in 1990 SADGURUDEV gave paryogs based on KLEEM BEEJ in magazine which gave positive results. One more important thing is that a saadhak who sidh WASHIKARAN SAADHNA also needs to practice TRAATK. This TRAATK can practice on KAAM BEEJ or on VISHESH SAMMOHAN VASHIKARAN YANTRA which saadhak can have from GURUDHAAM.

To sidh this mantra, take a white paper or bhojpatra which have MAITHUN CHAKRA make from TRIGANDH and in the centre of this CHAKRA draw BEEJ MANTRA with KUMKUM. Then light a deep (earthen lamp) with the things- KUMKUM, RAKT PUSHP, NAIVODYA, and RAKT VARNIYE BATTI. It is must to use AGRBATTI having fragrance (khushbu) of GULAAB, MOGRA, and CHAMELI during sadhnaa kaal.

To sidh this sadhnaa saadhak should use red clothes or red aasn to sit. Morning and night hours are good for this sadhnaa and west or south directions can use for this sadhnaa. After GURU POOJAN and YANTRA POOJAN pay attention (dhyaan) on that yantra at TRIKUT (center of forehead) and during dhyaan KAAM BEEJ at the center of MAITHUN CHAKRA must be red. If you do this sadhnaa as I said here then there will be no problem otherwise some dangerous results can happen. Always use SIDDHASAN or SUKHASAN and finally do TRAATAK (which decidedly saadhak can do). Do this sadhnaa daily ONE HOUR for 11 days and if you are using MOONGE KI MAALA then do not count jaap but complete your one hour. Slowly- slowly this mantra will come into your mind with its great light and power which is the sigh of your success. You can understand it’s important only then when you do some LAKSHMI or VASHIKARAN sadhnaa without it and again do that sadhnaa with the help of this KAAM BEEJ MANTRA. After seeing its effect you get shocked so what are you waiting for? Go ahead and see the difference.

Spells associated with tooth pain दांत के दर्द से सम्बंधित मंत्र



SABAR TANTRA MAHAVISHANK-My experience with sabar mantra


ye aapko blog mein june wale lekh mein mil jayega bhaiyya mein likha tha
........pls try

यह याद आते ही मैंने एक जगह दांत के दर्द से सम्बंधित मंत्र देखा जिसमें
असर तो अछूक लिखा था पर सिध्ह करने की कोई विधि ही नहीं थी, अत्यंत ही सरल
प्रक्रिया थी. उस विधि को मैं ने प्रारंभ कर दिया . मंत्र दो दिन के अन्दर ही
दर्द सामाप्त हो गया तब से आज तक कभी दर्द फिर से लौटा नहीं, पर कभी
सम्भावनाये दिखी तब इस मन्त्र अक थोडा सा जप ने पुनः दर्द आने की सम्भावनाये
क्षीण कर दी .

विधि इस प्रकार्र हैं

भोजन करने के उपरान्त हाथ मैं जल लेकर इस मंत्र को सात बार पढ़े फिर इसी
अभिमंत्रित जल से कुल्ला कर ले, सात बार करें ओर आप इसी प्रकिर्या को
प्रतिदिन करें , आप इस मंत्र के चमत्कारिक परिणाम देख कर आश्चर्य चकित हो
जायेंगे.

*काहे रिसियाए हम तो हैं अकेला , तुम हो बत्तीस बार हमजोला,*

*हम लाये तुमबैठे खाओ , अन्तकाल में संग ही जाओ ..*


After taking any meals , take water in hand and just repeat the seven
times this mantra and wash your mouth from inside .repeat this process
seven times in one go. And see the result your self.

“*Kahe risiyaye ham to hain akela tu m ho battis baar hamjola*

* Ham laye tum baithe khao, antkaal main sang hi jao ..”*

Mantra chanting effect मंत्र जप प्रभाव

मंत्र जप प्रभाव:-
जब तक किसी विषय वस्तु के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं होती तो व्यक्ति वह कार्य आधे अधूरे मन से करता है और आधे-अधूरे मन से किये कार्य में सफलता नहीं मिल सकती है| मंत्र के बारे में भी पूर्ण जानकारी होना आवश्यक है, मंत्र केवल शब्द या ध्वनि नहीं है, मंत्र जप में समय, स्थान, दिशा, माला का भी विशिष्ट स्थान है| मंत्र-जप का शारीरिक और मानसिक प्रभाव तीव्र गति से होता है| इन सब प्रश्नों का समाधान आपके लिये -

जिस शब्द में बीजाक्षर है, उसी को 'मंत्र' कहते हैं| किसी मंत्र का बार-बार उच्चारण करना ही 'मंत्र-जप' कहलाता है, लेकिन प्रश्न यह उठता है, कि वास्तव में मंत्र जप क्या है? जप से क्या परिणाम होते निकलता है?

व्यक्त-अव्यक्त चेतना

१. व्यक्त चेतना (Conscious mind). २. अव्यक्त चेतना (Unconscious mind).

हमारा जो जाग्रत मन है, उसी को व्यक्त चेतना कहते हैं| अव्यक्त चेतना में हमारी अतृप्त इच्छाएं, गुप्त भावनाएं इत्यादि विद्यमान हैं| व्यक्त चेतना की अपेक्षा अव्यक्त चेतना अत्यंत शक्तिशाली है| हमारे संस्कार, वासनाएं - ये सब अव्यक्त चेतना में ही स्थित होते हैं|

किसी मंत्र का जब ताप होता है, तब अव्यक्त चेतना पर उसका प्रभाव पड़ता है| मंत्र में एक लय (Rythm) होता है, उस मंत्र ध्वनि का प्रभाव अव्यक्त चेतना को स्पन्दित करता है| मंत्र जप से मस्तिष्क की सभी नाड़ियों में चैतन्यता का प्रादुर्भाव होने लगता है और मन की चंचलता कम होने लगाती है|

मंत्र जप के माध्यम से दो तरह के प्रभाव उत्पन्न होते हैं -
१. मनोवैज्ञानिक प्रभाव (Psychological effect)
२. ध्वनि प्रभाव (Sound effect)

मनोवैज्ञानिक प्रभाव तथा ध्वनि प्रभाव के समन्वय से एकाग्रता बढ़ती है और एकाग्रता बढ़ने से इष्ट सिद्धि का फल मिलता ही है| मंत्र जप का मतलब है इच्छा शक्ति को तीव्र बनाना| इच्छा शक्ति की तीव्रता से क्रिया शक्ति भी तीव्र बन जाति है, जिसके परिणाम स्वरुप इष्ट का दर्शन या मनोवांछित फल प्राप्त होता ही है| मंत्र अचूक होते हैं तथा शीघ्र फलदायक भी होते हैं|

Tantra Vijay-15 Vishalakshi Akarshan Sadhna(Ultimate Sadhna To Attract Everyone)

Tantra Vijay-15 Vishalakshi Akarshan Sadhna(Ultimate Sadhna To Attract Everyone)

सदगुरुदेव के साथ बिताए हुए दिनों की याद में खोया हुआ मोहन मुझ से अपने जीवन के वो पल, वो घटनाए बाँट रहा था जो उसके जीवन की निधि थी. रोमांचित सा हो कर के सुन रहा था मै उसकी दास्तान. तंत्र की विलक्षण साधनाओ की खोज में जब में घूम रहा था उसी समय मुलाकात हुयी थी मोहन से. दिखने में तो ३० साल से ज्यादा उम्र नहीं थी पर ये तो गुरुदेव से प्राप्त कयाकल्प का चमत्कार था , उम्र तो उसकी ५० के करीब थी. न जाने किस प्रेरणा के वशीभूत वो मेरे ही इंतज़ार में था, सर्दियों की राते थी वह. खाली जेब से निकल पड़ा था में हजारो मिल दूर ,किसी अज्ञात संकेत के इशारे पर. अचानक मोहन से हुयी मुलाक़ात शायद उस संकेत का आखरी छोर था. उस झील के किनारे रात में चांदनी भी चारो तरफ बेठ कर सुन रही थी उस रहस्यमय साधक की दास्तान.
“सदगुरुदेव के महाप्रयाण के बाद में हिमालय स्थित भैरव महा पीठ के पुजारी ने कई बार सदगुरुदेव को वहाँ अपने शिष्यों के साथ साधनारत पाया हे. एक दिन जब में बहुत उदास हो गया था तो रो पड़ा गुरुदेव की तस्वीर के सामने की आप क्यों हमें छोड़ के चले गए ...तभी चारो तरफ अष्टगंध की सुगंध फ़ैल गयी, जब नज़र ऊपर उठाई तो सदगुरुदेव सामने खड़े थे , कठोर भावमुद्रा से उन्होंने कहा ‘क्यों रो रहा हे ,मै सदैव उपस्थित हूं ’ और वे एकदम से अद्रश्य हो गए ...
निखिलेश्वरानन्द स्तवन का पाठ करते हुवे कई बार सदगुरुदेव ने मुझे अपने सन्याश स्वरुप में दर्शन दिए हे. इससे बड़ी साधनात्मक उपलब्धि क्या होगी.”
रात बढ़ चुकी थी और ठण्ड भी. बुखार से बुरे हाल थे मेरे फिर भी उसकी बातो में ही खोया हुवा था. उसके चहरे पर गज़ब का आकर्षण था. कुछ ऐसा की देखते ही उसे कोई भी अपने से श्रेष्ठ मानने के लिए बाध्य हो जाए. समझते देर न लगी की कोई तो आकर्षण साधना कर रखी हे उसने.
“यही पास ही में एक मंदिर हे. उसमे देवी की आधे फीट की प्रतिमा हे. एक दम जिवंत, वहाँ पे जो भी साधनाए करे वो सफल होती ही हे. लोगो को तो मालूम भी नहीं हे की वो विशालाक्षी का स्थान हे. देखना चाहोगे ?”
मेने सर हिला के सहमति दर्शायी तो वे एक तरफ चल दिए. में भी पीछे पीछे चल पड़ा. रस्ते में एक सन्याशी के वहाँ कुछ देर रुके जो कर्णपिशाचिनी साधना में सिद्धहस्त थे. वे दोनों कुछ देर बाते कर रहे थे. सन्याशी ने मेरी तरफ देखा भी नहीं इससे में अकड गया. बहार आते ही मोहन मुस्कराहट के साथ आगे बढ़ गए. रस्ते में ही बताया उसने की आकर्षण साधना आज के युग में बहोत ही उपयोगी हे. चाहे वह देश का नेता हो या एक छोटा सा नागरिक. अगर आपका व्यक्तित्व आकर्षक हे तो हर कोई आपकी बात मानने के लिए बाध्य हो जाएगा. ऐसे व्यक्तियो को मान सम्मान प्राप्त होता ही हे और भौतिकता में सहज वह सफल हो सकते हे. आकर्षण के लिए कई साधनाए हे जो की सरल और सहज हे.
मंदिर आ चूका था और उस जिवंत प्रतिमा का दर्शन कर धन्य हो गया में. सुनसान पड़ा वो मंदिर मुश्किल से किसी के ध्यान में आ सकता था. एक हफ्ते तक वो विलक्षण व्यक्ति से जो ज्ञान मिला वो तो शब्दों से परे ही हे. सालो बीत गए आज, फिर मिलना नहीं हो पाया उससे. लेकिन आज भी उसका वो चेहरा नहीं भूल पाया हू ...जो आकर्षण से भरपूर था.
आकर्षण की एक विशेष विशालाक्षि साधना जो की बहोत ही सहज हे.
ये साधना बुधवार से शुरू की जाती हे. इस साधना में रात्रि के ११ बजे बाद रोज २ घंटे मंत्र का उच्चारण किया जाता हे. इसमे जाप संख्या निर्धारित नहीं हे, माला भी आवश्यक नहीं हे. सामने एक दीपक लगा हो और वो लगातार २ घंटे तक चलता रहे. उसकी लौ पर देखते हुए मंत्र जाप हो. ये साधना ८ दिन तक नियमित करे. अगले बुधवार तक एक ही स्थान पर निश्चित समय पर मन्त्रजाप हो. रोज मंत्र जाप से पहले विशालाक्षि देवी को मन ही मन प्रार्थना साधना में सफलता करके ही साधना में प्रवृत हो.
मंत्र : हूं हूं फट फट हूं हूं
दिखने में ये मंत्र भले ही सामान्य लगे पर इसका प्रभाव आपको कुछ ही दिनों में दिखने लगेगा. साधना खतम होते होते चेहरे पर और विशेष कर आँखों में एक विशेष आकर्षण आ जाता हे जिससे सभी प्रकार से सफलता प्राप्त होती हे.
जय गुरुदेव.
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Being lost in the days which he passed with Sadgurudev, Mohan was sharing me those moments, those incidents which were actual wealth for him. I was excited and willingly listening to him. When I was roaming to search rare sadhanas of Tantra, at that time I met Mohan. Looking at him, He seems to be just 30, but it was result of Kayakalp given by Sadgurudev; his actual age was nearly 50. Can’t say by which intuition he was waiting for me, those were winter days. With empty pockets I went thousands miles away, directed by unknown prediction. I guess it was last dot of that unknown sign to meet Mohan. Moonlight spread around us on the bank of pond was even interestingly listing to that mysterious sadhak.
“Priest of Bheirav Mahapeeth situated in Himalayas has seen Sadgurudev with his disciples performing their sadhana, though after sadgurudev passed away from his mortal form. One day when I became very sad, I went in front of sadgurudev’s picture and cried a lot that why you left us all...at that time only aroma of Ashgandh spread, When I looked infront, Sadgurudev were standing there in air, in hard voice he said ‘ Why are you crying, I am here only’ and he became invisible instant...
While reading Nikhileshwaranand Stavan I got his Darshan many time in his sanyash form. What could you say more spiritual attainment then this. “
Night and cold both turned on. I was very weak with fever but at same time was lost in his talk. There was a great attraction in his face. Something which let anyone feel that he is more ahead than us. It took me no time to understand that he did some sadhana on attraction.
“Near only, there is a temple. There is a half feet idol of goddess. Like alive, whatever sadhana if performed there, it does gives results. People do not know that that is a place of devi vishalakshi. Want to see?”
I accepted by nod and he started walking in one direction, I too went on after him. In between we stopped at a sage who was accomplished in Karnpishachini Sadhana. Both of they, talked for a while. Sage didn’t even look at me, so I became irritated. After coming out with smile Mohan started moving. In the way to temple, he told me that Aakarorshan Sadhana is very important in this time for everyone. Whosoever he may is a leader or a common man. If there is an attraction in your personality, everyone would be bind to agree with you. Such people do always get respect in society and he becomes a successful material man. There are so many sadhanas of attraction which are easy and straight.
Temple came and I became glad by receiving blessing. The temple was very difficult to come in note of common public. The knowledge which I got from that mysterious man cannot be described in the words. Many years passed, but it became not possible to meet him again. But today even, I have not forgot his face...full of attraction. There is one easy Vishalakshi sadhana for attraction.

This sadhna could only be started on Wednesday. In this sadhana 2 hours mantra chanting is needed after 11 pm. There is no fix counting if rosaries. A lamp should be light in front; Mantra jaap should be done by looking at the light of lamp. The sadhna should be repeated till 8 days. Till next Wednesday mantra jaap should be on same place and same time. One should pray to Devi Vishalakshi for success in sadhana before starting mantrajaap daily.
Mantra: Hum Hum Phat Phat Hum Hum
Although this mantra seems very common but you can see power in few days. after finishing sadhana one will get attraction on whole face and especially in eyes through which success could be generated very easily in every field.
Jai Gurudev.